अरावली सफारी पर उच्चतम न्यायालय की रोक
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक और सार्थक निर्णय दिया है। हरियाणा की प्रस्तावित अरावली सफारी पार्क परियोजना पर न्यायालय ने रोक लगा दी है।
कुछ बिंदु –
- प्रस्तावित सफारी 2,500 एकड़ में फैली हुई है। भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली पर्वत माला अनेक वन्य जीवों का घर है।
- जंगल के कुछ हिस्सों में बाड़ लगाने से वन्यजीवों का गलियारा अवरूद्ध होता है। इससे वन्यजीवों और मानव संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।
- यह श्रृंखला राज्य के लिए भू-जल पुनर्भरण करती है। यह प्रभावित होगा।
- राजस्थान के रेगिस्तान की धूल भरी आंधियों से क्षेत्र का बचाव करती है।
सरकार का दावा –
- सरकार का तर्क है कि वह ‘जैव विविधता का संरक्षण‘ करेगी।
- राजस्व अर्जित करेगी। इसे क्षेत्र के विकास में लगाया जा सकेगा।
वास्तविकता क्या है –
- अरावली को संरक्षण की जरूरत है। प्रस्तावित परियोजना अरावली को अपूर्णीय क्षति पहुँचाएगी।
- संरक्षण से जुड़े सरकार के दावों का संबंध जमीनी स्तर पर होने वाली घटनाओं के साथ कितना होगा, इसकी आशंका है।
- वास्तविक संरक्षण का अर्थ उन अपवादों और कमियों के पिछले दरवाजे बंद करना है, जो इको-टूरिज्म के नाम पर शोषण की अनुमति देते हैं।
सरकार को स्वयं ही वास्तविक संरक्षण के प्रयास करने चाहिए। अवैध खनन पर अंकुश लगाने, देसी वनस्पतियों के पुनर्स्थापन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। ये ऐसे लक्ष्य हैं, जो संरक्षण को दीर्घकालिक आर्थिक स्वास्थ्य के साथ सही मायने में बनाए रखेंगे।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 अक्टूबर, 2025