अनुबंध आधारित रोजगार के चिंताजनक परिणाम

Afeias
11 Oct 2025
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वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण 2023-24 एक चिंताजनक प्रवृत्ति अनुबंध आधारित रोजगार में वृद्धि की ओर इशारा करता है। संगठित विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत कुल कामगारों का 42% अनुबंध आधारित है। 1997-98 में यह दर सिर्फ 16% थी। पिछले 10 वर्षों में लगातार वृद्धि हुई है। जबकि नियोजित कामगरों की संख्या लगातार घटी है। इन कामगरों को तीसरे पक्ष की एजेंसियों के माध्यम से अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जाता है।

अनुबंध आधारित रोजगार में वृद्धि के कारण –

  • कठोर श्रम कानून व मजबूत रोजगार सुरक्षा प्रावधानों के कारण मांग के अनुसार कार्यबल को समायोजित करना कठिन होता है।
  • अनुबंध आधारित रोजगार से कंपनियों को प्रबंधन में लचीलापन मिल जाता है व नौकरी की सुरक्षा से जुड़े खर्चे भी कम होते है।
  • राज्यों में असमान नियामक प्रवर्तन और विभिन्न औद्योगिक प्रथाएँ श्रम कानूनों को अधिक जटिल बना देती हैं।

अनुबंध आधारित रोजगार के परिणाम –

  • ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा रोजगार शहरों की तुलना में अधिक है। वहीं इसमें राज्यों में भी अंतर है। बिहार में 68.6% जबकि केरल में सिर्फ 23% अनुबंध आधारित रोजगार दिए गए हैं।
  • इससे कंपनियां बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं कर पाती हैं, इससे उत्पादकता के साथ-साथ प्रतिस्पर्धात्मकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • हम श्रम प्रधान वस्तुओं में भी आपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाते, क्योंकि हम श्रमबल का सही उपयोग करने में असफल रहते है, जबकि हमारे पास पर्याप्त श्रमशक्ति है।
  • कहा जाता है कि अनुबंध आधारित रोजगार अल्पकालिक या कम कुशल कार्यों के लिए होता है, जबकि आज पूँजी प्रधान उद्योग; जिनको कुशल श्रमबल की आवश्यकता होती है, में भी अधिक अनुबंध आधारित रोजगार दिए जा रहे हैं।
  • इससे लागत में कटौती, शक्ति असंतुलन व अस्थिर रोजगार प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है। साथ ही वस्तुओं की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
  • इससे कामगारों की रोजगार सुरक्षा, सीमित बीमा, सवैतनिक अवकाश जैसी सुविधाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
  • इससे श्रम शक्ति कमजोर पड़ती है। संसाधनों की कमी के कारण वह आर्थिक झटके झेलने में असमर्थ होती है।

आगे की राह –

  • हमें चारों श्रम संहिताओं को बिना देरी किए लागू करना चाहिए, जिसमें अनुबंधित व गिग श्रमिकों के लिए रोजगार सुरक्षा संबंधी उचित प्रावधान हैं।
  • श्रम-बाजार अधिक समावेशी और सुरक्षित हो। इससे औपचारिक क्षेत्र में भी गिरती रोजगार गुणवत्ता में कमी आएगी।
  • भारत को श्रम बाजार में लचीलापन व रोजगार की शर्तों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।

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