इलाहबाद उच्च न्यायालय की गलत टिप्पणी

Afeias
30 Jul 2024
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देश की अदालतों से निष्पक्षता और तर्क का समर्थन करने की आशा की जाती है। लेकिन हाल ही में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने इससे उलट व्यवहार किया है। न्यायालय ने हिंदुओं के अ ल्पसंख्यक बनने के खतरे को सही ठहराने की कोशिश की है। डेटा के आधार पर यह झूठ सिद्ध होता है –

  • कुल प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) स्तर से नीचे पहुंच चुकी है।
  • मुसलमानों में यह हिंदुओं की तुलना में और भी नीचे जा चुकी है।
  • 1992-93 और 2019-21 के बीच मुस्लिम प्रजनन दर 2 अंक गिरकर 2.4 पर आ गई है। हिंदुओं में यह 1.3 अंक गिरकर 2 पर आ गई है।
  • प्रजनन विविधता का असली कारण धर्म नहीं बल्कि क्षेत्र है। बिहार में हिंदू प्रजनन दर (2.88) कर्नाटक में मुस्लिम प्रजनन दर (2.05) से अधिक है। इस मामले में सब कुछ शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान या पिछडे़पन पर निर्भर करता है। यही प्रजनन दर के निर्धारण के लिए जिम्मेदार है।

भारतीय न्यायालयों से रूढ़िवादिता और संघर्ष को बढ़ावा देने वाली टिप्पणीयों की अपेक्षा नहीं की जाती है। उन्हें तथ्यों के आधार पर व्यवहार करना चाहिए।

द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 4 जुलाई, 2024