एआई के नैतिक उपयोग से जुड़े वैश्विक मानक

Afeias
27 Jul 2022
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आज हमारे जीवन में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) पहले से ज्यादा घुसपैठ कर चुका है। कृषि के प्रबंधन के लिए मौसम के मिजाज को समझने से लेकर जटिल से जटिल डेटा को समझने में एआई हमारी मदद कर रहा है।

एआई से संबंधित चुनौतियां ये हैं –

  • एआई में फीड करने के लिए उपयोग किया जाने वाला डेटा अक्सर हमारे समाजों की विविधता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। इससे भेदभावपूर्ण परिणाम मिलते हैं।
  • फेस रेकगनिशन या चेहरे की पहचान करने वाली तकनीकों में समस्याएं आ रही हैं।
  • ये मुद्दे भारत के लिए विशेष चुनौती उत्पन्न करते हैं, क्योंकि दुनियाभर में 10 सॉफ्टवेयर डेवलपर्स में से केवल एक महिला होती हैं। वह भी पश्चिमी देशों की होती हैं। अतः यहां की महिलाओं के चेहरे की विविधता को एआई में ठीक से फीड नहीं किया जा सका है।

चूंकि भारत एआई प्रौद्योगिकी के लिए दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक है, इसलिए देश में इन मुद्दों का समाधान ढूंढा जाना जरूरी है। नीति आयोग ने भी इसे रेखांकित किया है।

प्रयास –

  • इन प्रौद्योगिकियों की पूरी क्षमता तक प्रत्येक नागरिक की पहुँच बनाने के लिए नीति आयोग ने ‘एआई फॉर ऑल’ अभियान चलाया है। इसका उद्देश्य एआई प्रशासन को जिम्मेदारी और नैतिक दायित्व देना है। साथ ही, एआई के विकास को मानवीय मूल्यों पर आधारित करना है।
  • गत वर्ष नवंबर में 193 देशों ने यूनेस्को में एआई के बारे में सरकारों और तकनीकी कंपनियों द्वारा डिजाइन और उपयोग के तरीके पर एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। इसका उद्देश्य लोगों और एआई विकसित करने वाले व्यवसायों और सरकारों के बीच शक्ति के संतुलन को मौलिक रूप से स्थानांतरित करना है।
  • यूनेस्को के सदस्य देशों ने एआई के विकास से लेकर तैनाती और उपयोग संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार किया है। इसकी सार्थकता तभी होगी, जब डिजाइन टीमों में महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों का उचित प्रतिनिधित्व हो।
  • यूनेस्को का यह प्रस्ताव डेटा के उचित प्रबंधन, गोपनीयता और सूचना तक पहुंच के महत्व को भी रेखांकित करता है। यह उपयोगकर्ताओं के हाथों में डेटा पर नियंत्रण रखने की जरूरत पर बल देता है। इससे वे आवश्यकतानुसार जानकारी को रखने और हटाने में सक्षम हो सकते हैं।
  • सदस्य देशों से संवेदनशील डेटा के प्रसंस्करण और प्रभावी जवाबदेही के लिए उपयुक्त सुरक्षा उपाय तैयार करने के साथ नुकसान की स्थिति में निवारण तंत्र बनाने का भी आह्वान किया गया है।
  • एआई संबंधित प्रौद्योगिकियों के व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों को भी संबोधित किया गया है।
  • बच्चों और युवाओं पर इन प्रौद्योगिकियों के मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक प्रभाव पर विशेष ध्यान देने की अपील की गई है।

कई देशों में पहले से ही एआई विनियमन और नीति में यूनेस्को की सिफारिशों का उपयोग किया जा रहा है। फिनलैंड ने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है कि किस प्रकार अत्याधुनिक तकनीकों से किसी प्रकार का समझौता किए बिना, उनका नैतिक उपयोग किया जा सकता है।

वास्तव में, अगर इन प्रौद्योगिकियों को विकसित करने का व्यवसाय मॉडल मानव को सर्वोपरि रखकर नहीं चलता है, तो असमानताएं इतनी बढ़ जाएंगी, जैसा कि इतिहास में कभी न हुआ होगा। इसलिए, यह आशा की जाती है कि सरकारें स्वयं ही एक जवाबदेही तंत्र में मानवतावादी सिद्धांतों को शामिल करने के लिए प्रयास करेंगी।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित गेबरिला रामोस और रित्वा कोकू रोंड के लेख पर आधारित। 22 जून, 2022