अफस्पा जैसे कठोर कानून को संकुचित करने का प्रयास
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हाल ही में केंद्र सरकार ने असम, मणिपुर और नागालैण्ड में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम या एएफएसपीए के तहत क्षेत्र को कम करने का निर्णय लिया है। यह कानून सशस्त्र बलों को संदेह पर तलाशी, गिरफ्तारी और गोली मारने की असाधारण शक्ति देता है।
कानून को हटाने की मांग क्यों थी ?
- यह नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कम करता है।
- इसका लगातार विस्तार होता जा रहा था। भले ही इसका कारण क्षेत्र में होने वाले हिंसक विद्रोह रहे हों, लेकिन इसके प्रति अस्वीकृति भी उतनी ही बढ़ती जा रही थी।
- इसने पूर्वोत्तर को शेष भारत से अलग कर दिया था।
- पिछले वर्ष नागालैंड के मोन जिले में एक असफल आतंकवाद विरोधी अभियान में सुरक्षा बलों ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी। इससे अफस्पा को निरस्त करने की मांग तेज होने लगी थी।
महत्व –
यह कदम इस क्षेत्र में आतंकवाद के संकट को समाप्त करने के लिए हाल के वर्षों में भारत सरकार के प्रयासों को रेखांकित करता है।
चुनौतियां –
- असम की तुलना में मणिपुर और नागालैण्ड क्षेत्र अधिक तनावग्रस्त रहे हैं। इसलिए असम के लगभग 23 जिलों में जबकि मणिपुर के छह और नागालैण्ड के सात जिलों में ही छूट दी जा रही है।
सरकार का यह कदम अत्यंत सराहनीय कहा जा सकता है। हाल के वर्षों में पूर्वोत्तर में लगभग 7,000 आतंकवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। साथ ही, 2020 का बोडो और 2021 का कार्बी-आंगलौंग समझौता, क्षेत्रीय विद्रोहों के मूल कारणों को संबोधित करने वाला रहा है। पूर्वोत्तर में सामान्यीकरण की दिशा में किए जा रहे परिवर्तनों को बनाए रखा जाना चाहिए। दुरूपयोग की संभावना वाले इस कानून का आधुनिक भारत में कोई स्थान नहीं होना ही श्रेयस्कर होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 1 अप्रैल, 2022