अडानी समूह का वित्तीय संकट त्वरित कार्रवाई की मांग करता है
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हाल ही में सामने आए अडानी समूह के वित्तीय संकट ने देश की वित्तीय अस्थिरता को बढ़ा दिया है। इस समूह के शेयर लगभग 27% नीचे गिर गए। जनवरी से लेकर अब तक समूह ने 100 अरब डॉलर के बाजार मूल्य की सम्पत्तियाँ गंवा दी है। इस मुद्दे पर संसद स्थगित करनी पड़ी है। किसी एक समूह पर आए इस संकट का प्रसार अन्य फर्मों पर होने की आशंका बनी रहती है। सन् 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान इसी प्रकार का ट्रेंड देखा गया था।
इसके प्रभाव पर कुछ बिंदु –
- पिछले कुछ दिनों में समूह की ऋण प्रतिभूतियों में तेजी से गिरावट आई है। ऐसा संकेत मिला है कि समूह की कुछ ऋण प्रतिभूतियों को व्यापार के लिए संपार्श्विक (कोलेटरल) के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है।
- ऐसी नकारात्मक धारणा, उन अन्य भारतीय फर्मों को प्रभावित कर सकती हैं, जिन्होंने विदेशों से कर्ज लिया है।
कंपनियों के संगठन, विभिन्न वित्तीय अधिकार क्षेत्रों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करते हैं। इसलिए अडानी समूह के विदेशी बॉन्ड की समस्या भारत में फैल सकती है। 2008 के संकट की शुरूआत में मुद्रा बाजारों के गिरने के दौरान अमेरिकी नियामकों ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। इसके परिणामस्वरूप इसका आतंक लगभग हर भौगोलिक क्षेत्र में फैल गया था।
आरबीआई और सेबी को सतर्कता के साथ नियामकों के अनुसार जल्द-से-जल्द कार्यवाही करनी चाहिए। यह स्थिति नियामक क्षमता की उतनी ही परीक्षा है, जितनी अडानी समूह के भविष्य की।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 फरवरी, 2023