अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा एक मामला
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- भारत जैसे लोकतांत्रिक समाज में व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर किताबों या फिल्मों पर प्रतिबंध को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। हाल ही में एक फिल्म ‘हमारे बारह’ की रिलीज को इसी कारण से रोक दिया गया था। लेकिन बॉम्बे उच्च-न्यायालय ने कुछ विवादास्पद संवादों को हटाने की शर्त पर प्रतिबंध हटा दिया है।
- यह पूरा मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन से जुड़ा हुआ है। सर्वोंच्च न्यायालय ने अपने कुछ ऐतिहासिक फैसलों से किसी भी रचना के (चाहे वह किताब हो, नाटक हो या फिल्म हो) विरोध या संभावित हिंसा की धमकी के तहत प्रतिबंधित किए जाने की संभावना को खारिज कर दिया है। एक ऐसा ही निर्णय 1989 में एस.रंगराजन बनाम पी.जगजीवन राम का है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि किसी भी एकसी रचना का समर्थन किया जाए, जिसकी विषय वस्तु अप्रिय हो या जिसमें घिनौना प्रचार हो। लेकिन आशंका की स्थिति में उचित अधिकारियों द्वारा समीक्षा के बाद उस पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
अगर देश को एक स्वतंत्र और खुला समाज बनाना है, तो किसी भी दृष्टिकोण को दबाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। साथ ही, तथ्यों के आधार पर सांप्रदायिक व अन्य प्रकार के दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए साधन भी विकसित किए जाने चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 12 जून, 2024
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