आनंद या खुशी का इंजन
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एक इंसान की खुशी का पैमाना क्या हो सकता है, या मनुष्य की खुशी को कैसे मापा जा सकता है? दरअसल, खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि आप जीवन को किस तरह देखते हैं, और जीवन में क्या चुनते हैं। समस्या यह है कि हम सुख को खुशी या आनंद समझने की भूल करते हैं। यह हमें खुशी या आनंद के मूलभूत प्रश्न पर लाता है। क्या हमारे आनंद प्राप्त करने के उपाय वास्तविक मापदंड पर आधारित हैं? क्या सच्ची खुशी यात्रा के अंत में प्राप्त की जा सकती है?
हम स्वाभाविक रूप से खुश या आनंदित रूप में ही जन्म लेते है। प्रकृति स्वयं में सुख का स्रोत है, जो हमें भौतिकवादी लालसा से दूर खींचती है। शायद यही कारण है कि पूर्ण रूप से प्रकृति के दायरे में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा खुश रह पाते हैं। बच्चों की मासूमियत में भी खुशी झलकती है। यूं तो हम सब खुशी की तलाश करते हैं, लेकिन या तो हम अन्य भावनाओं को अपने पर अधिक हावी होने देते हैं, या फिर इसकी तलाश ही गलत जगह करते हैं।
यह मान्यता है कि समृद्धि से खुशी आती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वित्तीय सुरक्षा महत्वपूर्ण है। आय, सुरक्षा और खुशी के बीच एक सीधा संबंध भी है। लेकिन एक सीमा के बाद आय का प्रभाव कम होने लगता है।
हम सबको परिणामों के आधार पर खुशी पाने के लिए प्रोग्राम किया गया है। कार्यस्थल पर मिलने वाली उपलब्धियां तथा स्कूल के ग्रेड आदि हमें खुशी देते हैं। इस प्रकार से खुश या आनंदित होने के आधार ने हमें आनंद की प्राकृतिक अवस्था से दूर कर दिया है, जो जीवन की छोटी-छोटी खुशियों से प्राप्त हो जाया करती थी। अब हालत यह है कि कोई बड़ी उपलब्धि भी हमें वह खुशी नहीं दे पाती है, जो हमें होनी चाहिए। इसका निष्कर्ष यही है कि अंतिम परिणाम उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है। उस तक पहुँचने के लिए किया गया परिश्रम, सफलताएँ, चूकें तथा रास्ते के सभी छोटे-बड़े बिल्डिंग-ब्लॉक ज्यादा महत्वपूर्ण होते है। इन प्रयासों के बीच से निकलकर परिणाम तक पहुँचने का अपना अलग ही आनंद होता है।
यह समय सोशल मीडिया और डिजीटल लाइफ का है। इसमें फंसकर जितना हम अपने परिवार और फेस-टू-फेस मिलने जुलने से दूर होते जा रहे है, उतना ही हम खुशी या आनंद से दूर होते जा रहे हैं। आज के प्रतिस्पर्धी कार्यस्थलों में भी खुशी कम और ईर्ष्या-द्वेष अधिक पनप रहा है। जीवन और काम के बीच संतुलन रखने की मांग तेजी से बढ़ रही है। अपने परिवार और मित्रों के बीच समय बिताने के अलावा हमें लोगों का धन्यवाद करना, संबंधों को बनाए रखना, बुद्धि और शरीर के बीच संतुलन बनाए रखना आना चाहिए। सभी को एक समान्य सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना, निष्पक्षता का अभ्यास करना, बाधाओं को दूर करना, अधिक पारदर्शी होना, सहायक और दयालु होना, सत्यनिष्ठा का पालन और सामूहिक कार्यों में सामजस्य बनाए रखना आना चाहिए।
एक दार्शनिक ने कभी कहा है कि, ‘आनंद कभी बाहरी नहीं हो सकता…. यह सब हमारे मस्तिष्क में है, और इस पर लगातार काम करने की जरूरत है।’
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित हर्ष गोयनका के लेख पर आधारित। 27 मई, 2023