आमदनी बढ़ाने में बांस की खेती होगी कारगर

Afeias
28 Sep 2024
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परिचय –

बांस को ‘गरीबों की लकड़ी‘ तथा ‘हरा सोना’ कहा जाता है। इसमें किसानों की आमदनी बढ़ोत्तरी की संभावना देखते हुए सरकार ने “राष्ट्रीय बांस मिशन” तथा, एकीकृत बागवानी विकास मिशन को नए सिरे से शुरू किया है, जिससे देश में बांस की खेती को बढ़ावा दिया जा सकेगा।

नीति आयोग का अनुमान है कि 2025 तक दुनिया में बांस का बाजार लगभग 98.3 अरब डॉलर का हो जाएगा। चीन के बाद भारत सबसे बड़ा बांस उत्पादक देश है।

भारतीय वन अधिनियम में संशोधन –

2017 में इसमें संशोधन कर बांस को पेड़ के बजाय घास की श्रेणी में डाला गया। इससे इसकी कटाई, ढुलाई तथा बिक्री पर लगे सभी तरह के प्रतिबंध हट गए।

अब अन्य फसलों की तरह इसकी भी खेती की जा सकती है। इसे बेचने के लिए न तो किसी लाइसेंस की जरूरत है और न ही वन विभाग या किसी अन्य सरकारी एजेंसी की अनुमति लेने की।

बांस के कुल उत्पादन का 50% पूर्वोत्तर भारत में होता है। यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिमी- घाट आदि में भी होता है।

बांस की खेती से लाभ –

  • बांस ज्यादातर अन्य पौधों की तुलना में 35% अधिक आक्सीजन का उत्पादन करते हैं। इससे कार्बन सिंक में मदद मिलेगी।
  • यह जल्दी वृद्धि करते हैं। यह बायोमास के कारगर उत्पादकों में से एक है। पूर्वोत्तर राज्यों में खाद्य से लेकर औषधियों तथा ईंधन के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
  • इसमें कम कैलोरी तथा भरपूर फाइबर होता है।
  • इससे एथेनाल तथा इसकी लुगदी से कागज भी बनाया जाता है।
  • यह हल्का तथा टिकाऊ होता है। इसलिए इससे फर्नीचर और दूसरे घरेलू समान बनाए जाते हैं।
  • जहाँ इसकी रोपाई की जाती है, वहाँ आस-पास भी बांस के पौधे ऊग आते हैं। बीच की खाली जमीन पर हल्दी, मिर्च, अदरक जैसी फसलें उगाई जा सकती हैं।
  • बांस तथा इससे निर्मित उत्पादों की मार्केटिंग तथा निर्यात के लिए मूल्य-श्रंखला बनाने के उपाय किये जा रहे हैं इससे बांस की खेती को और भी लाभ मिल सकेगा।
  • ‘बीमा बांस‘ जैव प्रौद्योगिकी के जरिए तैयार की गई बांस की अधिक उपज वाली किस्म है।
  • किसान इससे 75000-80000 रुपये प्रति हेक्टेयर शुद्ध लाभ कमा सकते हैं।

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