केंद्रीय विस्टा योजना से जुड़ा सांस्कृतिक पक्ष
Date:05-07-21 To Download Click Here.
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना पर रोक की मांग को लेकर दी गई एक सार्वजनिक याचिका को खारिज कर दिया है। मंत्रालय और सरकारी विभागों के कार्यालयों के लिए भले ही यह योजना उपयोगी हो, परंतु अपनी वर्तमान योजनाओं में यह एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में अपना महत्व खो देगी।
सेंट्रल विस्टा योजना के साथ जुड़े नौकरशाही के दावे को भारतीय लोकतंत्र का प्रमाण नहीं माना जा सकता। हमें एक समानांतर सार्वजनिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है, जो सांस्कृतिक संस्थानों को साकार अभिव्यक्ति दे सके। विस्टा की सरकारी योजना और एक सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के नागरिक अधिकार को दो महत्वपूर्ण तर्कों द्वारा जांचा जा सकता है –
1) सेंट्रल विस्टा के इतिहास आधारित मूल्यांकन और इसकी 90 वर्ष पुरानी योजना की परीक्षा की आवश्यकता है। उपनिवेशकों ने तो इसे शायद और 100 वर्ष के अपने राज्य का एक भव्य शोपीस मानकर निर्मित किया होगा। परंतु उनके शासन के जल्दी खत्म होने के साथ ही यह हमारा गणतंत्र उत्सव का परेड ग्राउंड बन गया।
जर्मनी, ब्राजील और अमेरिका जैसे देशों ने अपने सार्वजनिक क्षेत्रों को सांस्कृतिक क्षेत्रों में बदल दिया है। कैपिटल और सरकारी कार्यालयों से घिरा वाशिंगटन लगातार सांस्कृतिक केंद्र भी बनता जा रहा है। इनसे तुलना करने पर हमारी सेंट्रल विस्टा योजना का औचित्य कितना रह जाता है ?
2) विस्टा का अपना सांस्कृतिक पहलू और भी महत्वपूर्ण बिंदु है। कलाकारों, इतिहासकारों, वास्तुकारों और कई संबंधित नागरिकों ने ऐसी योजना पर अपनी आशंका व्यक्त की है, जो इंडिया गेट मैदान के दूर-दराज के छोरों में संस्कृति को अस्पष्ट और असंबद्ध इमारतों में बदलने का काम कर रही है। कुछ लोगों का तर्क है कि भारत के सांस्कृतिक अवशेषों को स्थानांतरित करने की वर्तमान योजना अत्यंत हानिकारक है।
यह विडंबना है कि सरकार अपनी ही मूल्यवान धरोहर इतिहास, शिल्प, पांडुलिपियों, प्राचीन मूर्तियों आदि के स्थान परिवर्तन को लेकर इतनी उदासीन है। हमारी नाजुक और कीमती धरोहरें वैसे ही बहुत व्यवस्थित और प्रदर्शित नहीं हैं। इधर-उधर ले जाने में तो यह बहुत खराब या गुम हो सकती है।
यह स्थान की ऐतिहासिकता के संरक्षण के साथ एक समकालीन दृष्टि; दोनों की मांग करता है। राजनीतिक वाद-विवादों से परे यह एक नया आविष्कार है, जो एक व्यापक सांस्कृतिक पथ बनाता है, जिसमें दीर्घाएं, संग्रहालय, थियटर, अभिलेखीय एवं पुस्तकालय जैसी संरचनाएं शामिल हैं। संभावनाएं अनंत हैं। इन्हें वास्तु की चुनौती और परीक्षण के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित गौतम भाटिया के लेख पर आधारित। 4 जून, 2021