74वें संविधान संशोधन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट

Afeias
22 Nov 2025
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भारत का शहरी बुनियादी ढांचा लगातार दबाव में है। पहले शहरों को उत्पादकता का वाहक तथा जीवन-स्तर सुलभ कराने वाला माना जाता था। लेकिन अब उन्हें जलभराव, ट्रैफिक एवं प्रदूषण का वाहक माना जाता है। इसका कारण क्रियान्वयन न कर पाना है। सही नियोजन न हो पाना भी एक कारण है।

शहरी स्थानीय निकाय की संवैधानिक स्थिति –

1992 के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। इस अधिनियम की 12वीं अनुसूची के माध्यम से इन निकायों को 18 कार्य सौपें गए हैं। इससे शहरी नियोजन, भूमि, स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन तथा बुनियादी ढाँचा सेवाओं का रखरखाव आदि शामिल है। 2024 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा किये गए आडिट से इस अधिनियम के सही क्रियान्वयन न होने की सच्चाई सामने आती है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट की चिंताजनक बातें –

  • 12वीं अनुसूची के माध्यम से दिए 18 कार्यों में केवल 4 कार्यों की शक्तियाँ ही निकायों के पूर्ण स्वायत्त नियंत्रण में हैं अधिकांश राज्य व अर्द्ध-सरकारी संस्थानों के हाथों में है, जिनमें यू.एल.बी. का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता।
  • यूएलबी के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति का मूल्यांकन राज्य द्वारा किया जाता है। स्वायत्तता की इस कमी के कारण न सिर्फ स्वीकृत पदों की संख्या कम होती है, बल्कि 18 राज्यों में हर तीन में से एक पद रिक्त रह गया है। इससे निकायों को काम करने के लिए उचित मानव संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • 74वें संविधान संशोधन अधिनिमय में नए संस्थागत ढांचे जैसे; राज्य चुनाव आयोग, जिला नियोजन समितियाँ और महानगर नियोजन समितियों के गठन का प्रावधान किया गया है। ताकि नियमित चुनाव, एकीकृत एवं समन्वित क्षेत्रीय नियोजन सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन ऑडिट में 17 राज्यों के 2625 स्थानीय निकायों में 1600 निकायों में कोई निर्वाचित परिषद नहीं थी। केवल 5 राज्यों में ही चुनाव द्वारा महापौर की नियुक्ति हुई थी। इसका एक कारण वार्ड परिसीमन का अधिकार राज्यों के पास होना है।
  • ऑडिट में शामिल 10 राज्यों ने ही जिला स्थानीय निकाय का गठन किया था। केवल 3 ने ही वार्षिक जिला योजनाएँ बनाई थी। महानगर नियोजन समितियाँ भी 9 में से 3 राज्यों में ही बनी थी।
  • राज्य वित्त आयोग के गठन व इनकी सिफारिशों के क्रियान्वयन; इन दोनों में देरी देखी गई। राज्य सरकारों ने एसएफसी द्वारा अनुशंसित पूरी राशि नहीं जारी की, जिसके कारण 15 राज्यों में इन निकायों की प्राप्तियों में औसतन 1606 करोड़ की कमी आई।
  • स्थानीय निकायों के पास संपत्ति कर वसूलने का अधिकार है। लेकिन उसे कर की दर तय करने, उसका मूल्यांकन करने या संशोधन का अधिकार नहीं है। इससे संपत्ति कर पहले की दरों पर ही लगाए जा रहे हैं।
  • 11 राज्यों ने व्यय व राजस्व के अंतर को 42% पर पहुँचा दिया है। आवंटित राशि भी निकायों को पर्याप्त सहयोग दे पाने में असमर्थ होती है, क्योंकि विकास के लिए 29% वित्त निर्धारित होता है।

आगे की राह –

  • इन निकायों को स्वायत्ता प्रदान की जाए, खासकर कार्यबल सुनिश्चित करने के लिए।
  • राज्य चुनाव आयोग, डीपीसी, एमपीसी राज्य वित्त आयोग का सही समय पर गठन किया जाए।
  • नियमित योजनाएँ बनाई जाएं तथा क्रियान्वयन की स्वायत्तता भी दी जाए।

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