16वें वित्त आयोग के लिए संघवाद को बनाए रखने की चुनौती

Afeias
21 Feb 2024
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सोलहवें वित्त आयोग का काम प्रारंभिक चरण में है। इस आयोग की मुख्य चुनौती केंद्र और राज्यों के राजकोषीय विवादों के बीच एक संतुलन बनाकर चलना है।

वित्त आयोग पर कुछ बिंदु –

संघवाद की धुरी – देश की संस्थागत व्यवस्था में वित्त आयोग भारत के संघीय ढांचे के केंद्र में है। यह संवैधानिक अधिकारों के साथ केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के विभाजन की सिफारिश करता है। इस प्रक्रिया में वह राज्यों के बीच संसाधनों के विभाजन को भी निर्धारित करता है। इस प्रकार केंद्र सरकार के बजट के आंकड़ों पर भी आयोग की सिफारिशों का पूरा प्रभाव रहता है।

दो विषमताएं – सकल घरेलू उत्पाद में राज्यों का व्यय केंद्र सरकार की तुलना में अधिक है। हालांकि, प्रशासनिक दक्षता के लिए भारत सरकार अधिकांश करों को बढ़ाने की शक्ति रखती है। इससे भारत की संघीय प्रणाली में ऊर्ध्वाधर (हारिजॉन्टल) विषमता पैदा होती है। दूसरी ओर, वित्तीय जरूरतों और क्षमताओं के मामले में राज्यों की क्षमताएं बहुत भिन्न हैं। इन दो विषमताओं में संतुलन बनाने की चुनौती वित्त आयोग की होती है। इसे संबोधित करके ही संघीय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जा सकता है।

टर्म्स ऑफ रेफेरेंस का सीमित होना – वित्त आयोग को दिए गए संदर्भ की शर्तों या टर्म्स ऑफ रेफरेंस के अनुसार काम करना पड़ता है। 16वें वित्त आयोग के पास इसका दायरा पूर्ववर्तियों की तुलना में सीमित है। 15वें वित्त आयोग को तीन शर्तें दी गई थीं, जो राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों के आधार पर प्रोत्साहन संरचना को निर्धारित करती थी। लेकिन वर्तमान आयोग के लिए ऐसा पूरा विवरण ही गायब है। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि आयोग को कार्यकाल के बीच में ही टर्म्स ऑफ रेफरेंस दिया जाएगा।

डेटा गैप, संसदीय सीटों के निर्धारण की चिंता को दूर करना –

दक्षिण के कुछ राज्यों में अपर्याप्त डेटा और संसदीय सीटों के निर्धारण को लेकर आशंकाएं हैं। आयोग का काम इस प्रकार की चिंता को दूर करना है। हालांकि 2021 की जनगणना में देरी के कारण आयोग इसे कितनी कुशलता से कर पाएगा, कहना मुश्किल है। साथ ही, संसदीय सीटों के निर्धारण की राजनीतिक चिंताओं से आयोग को कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन वित्त आयोग अपने आसपास की राजनीति से शत-प्रतिशत प्रभावित होता है।

वित्त आयोग, केंद्र और राज्य सरकारों से व्यापक परामर्श के बाद ही अपनी सिफारिशें करते हैं। अगले 21 महीनों में इसकी काम करने की प्रक्रिया, संघवाद के लिए एक प्रयोग बनी रहेगी। उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयास सराहनीय होंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 01 फरवरी, 2024