स्वच्छ भारत मिशन की सफलता
Date:20-05-19 To Download Click Here.
पिछले पाँच वर्षों मे मोदी सरकार ने जितनी भी नीतियां चलाईं, सुधार किए और योजनाओं का शुभारंभ किया है, उनमें स्वच्छ भारत मिशन एक ऐसा सफल अभियान रहा है, जिसका भारत के सर्वांगीण विकास पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। खुले में शौच मुक्त होने तथा शहरों एवं गांवों में गंदगी के ढेर खत्म होने से हमारे देशवासियों को स्वस्थ जीवन जीने में अवश्य ही मदद मिलेगी।
कुछ तथ्य
- 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत के समय मात्र 38.7 प्रतिशत ग्रामीणों के पास शौचालय की सुविधा थी। आज यह बढ़कर 99.1 प्रतिशत हो गई है। गोवा और ओड़ीशा को छोड़कर अन्य राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के ग्रामीण अंचल खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। भारत के नगरों में भी स्थिति बहुत सुधर चुकी है।
ये आँकड़े आधिकारिक तौर पर लिये गए हैं। इन पर संदेह किया जा सकता है। परन्तु राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण भी इसका अनुमोदन करता है। यह सर्वेक्षण स्वतंत्र एजेंसी द्वारा करवाया गया था। इसमें एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया था, जिसमें कई सेवानिवृत्त अधिकारी तथा विपक्षी दल के भी कुछ सदस्य थे। साथ ही विश्व बैंक, यूनीसेफ, वाटर एड, वी एम जी एफ आदि के सदस्य शामिल हुए थे।
- 2018-19 के इस सर्वेक्षण में लगभग 90,000 परिवारों को शामिल किया गया था। राष्ट्रीय स्तर पर लिए गए डाटा से पता चलता है कि 93.1 प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा है। 90.7 प्रतिशत ग्राम खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं। 95.04 प्रतिशत गांवों में कूड़े के ढेर और रुके हुए पानी की समस्या न्यूनतम स्तर पर है।
- मिशन की सफलता के संदर्भ में अक्सर यह सवाल उठता रहा है कि शौचालयों के होने पर भी बहुत से घरों में उनका उपयोग नहीं किया जा रहा है। ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण में पाया गया कि 96.5 प्रतिशत लोग शौचालयों का उपयोग करते हैं।
इसका प्रमाण इस बात में भी है कि जहाँ 2017-18 में 77 प्रतिशत लोग ही शौचालयों का प्रयोग करते थे, वहीं 2018-19 में 93.1 प्रतिशत लोग इनका उपयोग करने लगे हैं। इस प्रकार शौचालय का उपयोग करने वाले परिवारों का अनुपात 93.4 प्रतिशत से बढ़कर 96.5 प्रतिशत हो गया।
- खुले में शौच मुक्त हुए गाँव का अनुपात 95.6 प्रतिशत से गिरकर 90.7 प्रतिशत रह गया। इससे निष्कर्ष निकलता है कि ग्रामीणों के व्यवहार में परिवर्तन लाना एक बड़ी चुनौती है, और सरकार को इस ओर प्रयास करने की आवश्यकता है।
ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण द्वारा प्रस्तुत की गई सकारात्मक छवि की आलोचना हो सकती है, परन्तु पिछले पाँच वर्षों में जो प्रगति हुई है, उसे नकारा नहीं जा सकता। इससे यह भी सिद्ध होता है कि विदेशों की तरह ही भारत में भी शौचालयों के शत-प्रतिशत प्रयोग और स्वच्छता को व्यवहार में लाया जा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविंद पन्गढ़िया के लेख पर आधारित। 1 मई, 2019