स्वच्छ भारत अभियान और उसकी कसौटियां
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अक्टूबर 2014 में स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत से लेकर अब तक भारत का स्वच्छता क्षेत्र 42% से बढ़कर 62% तक हो गया है। इस प्रगति की खास बात यह है कि इसमें ग्राम सरपंचों, अधिकतर महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई है। इस प्रयास के परिणामस्वरूप खुले में शौच करने वालों की संख्या में बहुत कमी आई है। तीन राज्य तो इस प्रथा से मुक्त घोषित कर दिए गए हैं। अक्टूबर, 2019 तक स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में अनुकूल कदम उठाए जा रहे हैं।
- दरअसल, स्वच्छ भारत अभियान शौचालय निर्माण कार्यक्रम मात्र नहीं है। यह तो वृहद स्तर पर चलाया जा रहा एक तरह का आचरण-परिवर्तन कार्यक्रम है। सड़क, पुल या हवाई अड्डे का निर्माण मानव-आचरण को बदलने की तुलना में लाख गुना सरल कहा जा सकता है। इस हेतु बड़े-बड़े जनसंपर्क अभियान चलाए जा रहे हैं। लेकिन इस क्षेत्र में सबसे अहम् भूमिका नीचे के स्तर पर काम करने वाले उन कार्यकर्ताओं की है, जो गांव और घर-घर में जाकर लोगों के बीच स्वच्छता और शौचालय निर्माण के लिए जागरूकता फैला रहे हैं।
- यूँ तो राज्य और जिले लगातार कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं। फिर भी अभी हमें हर गांव को एक कार्यकर्त्ताओं देने के लिए कुल पाँच लाख कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है।
- स्वच्छ भारत अभियान को जन-अभियान बनाने के लिए हमें शौचालय की तकनीक और उसके प्रयोगों को आम जनता को समझाना होगा। इसके लिए पिछड़े एवं ग्रामीण क्षेत्रों में दो गड्ढों वाला मॉडल सबसे उपयुक्त है। यह मॉडल अधिकांश गांवों में सफल रहा है।
- इन गड्ढों की साफ-सफाई भी आसान है और इससे कृषि उपयोग के लिए प्राकृतिक खाद बनाई जा सकती है। अलग-अलग क्षेत्रों के अधिकारी समय-समय पर इन गड्ढों की सफाई करके जनता के सामने स्वच्छता का उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
- स्वच्छता के इस अभियान में निजी क्षेत्र भी अपना पूर्ण सहयोग दे रहे हैं। टाटा ट्रस्ट ने लगभग 600 कार्यकर्ताओं तैयार किए हैं, जो अलग-अलग जिलों के जिलाधीशों को इस अभियान में सहयोग दे रहे हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र में स्वच्छता पखावाड़ा मनाए जाने के अलावा प्रत्येक मंत्रालय में स्वच्छता कार्य- योजना बनाई गई है। सन् 2017-18 के बजट में सभी मंत्रालयों ने लगभग 5,000 करोड़ रुपए स्वच्छता संबंधी गतिविधियों के लिए अलग रखे हैं।
- स्वर्ण मंदिर एवं तिरुपति मंदिर जैसे भारत के प्रतिष्ठित मंदिरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर की सफाई का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके साथ ही गंगा के किनारे बनी ग्राम पंचायतों ने भी इस अभियान में उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
- स्वच्छ भारत अभियान की जांच-पड़ताल इसका एक बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष है। अभियान की विश्वसनीयता के लिए यह बहुत आवश्यक है। फिलहाल, इसकी जांच के लिए केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर प्रक्रिया चलाई जा रही है। अभियान को मजबूती देने के लिए आने वाले दिनों में भी ऐसी प्रक्रिया चलती रहनी चाहिए।
- स्वच्छ भारत अभियान को चलाए रखना और खुले में शौच की प्रथा पर पाबंदी बनाए रखना वर्तमान सरकार के लिए चुनौती भरा काम है। खुले में शौच मुक्त हो जाने का दर्जा मिल जाना एक बात है, लेकिन स्थानीय प्रयासों से उसे निरंतर चलाए रखना दूसरी बात।
- आमतौर पर यह भी देखने में आता है कि सार्वजनिक शौचालयों का रख-रखाव इतना खराब होता है कि उनका उपयोग करना संभव नहीं होता। ऐसी स्थितियों में जनता क्या करे ? इसके लिए सतत् प्रयास किए जाने जरुरी हैं।
- स्वच्छ जल एवं सफाई से संबद्ध मंत्रालय ने राज्यों के साथ मिलकर अभियान चलाए हैंं। अब इनको सुचारू रूप से कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।
- इस अभियान को प्रत्येक घर तक पहुंचाने के लिए मंत्रालय के पास एक सशक्त तंत्र भी है।
पूर्ण विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि स्वच्छ भारत अभियान प्रगति-पथ पर अग्रसर हो रहा है, लेकिन मंजिल अभी दूर है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स‘ में प्रकाशित परमेश्वरम अय्यर के लेख पर आधारित।
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