सिंधु जल संधि में सुधार कितना संभव है?
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भारत के पाकिस्तान के साथ रिश्ते बिगड़ने के साथ ही कई बदलाव आए हैं। भारत ने पाकिस्तान के प्रति कड़ा रूख अपनाते हुए सर्जिकल स्ट्राइक का निर्णय लिया। इसी सिलसिले में 56 साल पुराने सिंधु जल समझौते को रद्द करने पर भी सोच-विचार किया जाने लगा है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो यह पहला मौका नहीं है, जब आतंकवाद जैसी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए जल अवरोध का एक मर्यादित हथियार के रुप में इस्तेमाल किया गया हो। टर्की ने अपने विरूद्ध कुर्दीस्तानियों द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद को रोकने के लिए सीरिया को पानी देना बंद कर दिया था। इसी वर्ष इस्त्रायल ने फिलिस्तीनी शहरों की जलापूर्ति को कई हफ्तों के लिए बंद कर दिया था। इस तरह के हथियार निःसंदेह आम नागरिकों को परेशानी में डालते हैं। परंतु ये उपाय समस्या से ज्यादा निदान के रुप में सामने आए हैं।
सिंधु जल समझौते पर कुछ भी निर्णय करने से पहले सरकार को इन कई पक्षों पर विचार करना होगा –
- इस रणनीति से शायद आने वाले समय में इस समस्त उपक्षेत्र में और भी विवाद खड़े हो सकते हैं। पाकिस्तान का लगभग 65% भूभाग सिंधु घाटी में आता है। उसकी इस निर्भरता को एकाएक खंडित कर देना या वहाँ के लोगों की नदी से जुड़ी आजीविका को खत्म कर देना क्या भारत की कूटनीति का हिस्सा बन पाएगा? जिनेवा समझौते के अनुच्छेद 54 में भी स्पष्ट रुप से असैनिक आबादी क्षेत्रों में ‘भुखमरी की नौबत लाने वाली खाद्य एवं जलापूर्ति के अवरोध’ की मनाही की गई है।
- पाकिस्तान के संदर्भ में भारत उच्च नदी तट क्षेत्र है। पाकिस्तान को जाने वाली नदियों का प्रवाह भारत होकर जाता है। किन्तु स्वयं भारत भी ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के संदर्भ में निचले बहाव क्षेत्र में आता है। पाकिस्तान के लिए जल संबंधी जो भी निर्णय भारत लेता है, उसका प्रभाव चीन-भारत जल समझौतों पर पड़ सकता है। फिलहाल भारत सियांग, लोहित और सबन्सिरी नदियों पर कई हाइड्रोइलैक्ट्रिक परियोजनाएं बना रहा है। अरुणाचल प्रदेश में कई बांधों के निर्माण की योजना है। पाकिस्तान से सिंधु जल समझौते को रद्द करने के बाद क्या गारंटी है कि चीन भारत की इन परियोजनाओं के लिए जल की पूर्ति होने देगा?
- भारत की अपनी एक अन्तरराष्ट्रीय साख है। भारत ने अभी तक पड़ोसी देशों के मध्य लाभ के बंटवारे के सिद्धांत को लेकर ही नेतृत्व किया है। अब वह उच्च नदी तट वाला क्षेत्र होने के नाते सिंधु जल समझौते को रद्द करके अचानक ही अपनी छवि नहीं बिगाड़ सकता। अब तक वह अपने पड़ोसी बांग्लादेश और पाकिस्तान को मुफ्त में ही बाढ़ की चेतावनी संबंधी डाटा देता आया है। इस नाते सिंधु जल समझौते को रद्द कर देने से उसकी वैधता और विश्वसनीयता को झटका लग सकता है।
विश्व में ब्राजील भी पराना के जल पर पैकाग्यूए एवं अमेरिका भी कोलेरेडो के जल पर मैक्सिको के साथ जल समझौते को निभाते चले आ रहे हैं।वास्तव में जल समझौते में शासक देश यानी उच्च तटीय देश क्षेत्रीय जनमानस की भलाई को ही अंतिम लक्ष्य मानकर चलते हैं, और उसी के अनुकूल संधियों के लिए तैयार रहते हैं। भारत ने भी ऐसा ही किया है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित निम्मी कुरियन के लेख पर आधारित।