समग्र धारणीय विकास के लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए?
Date:25-09-17
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हाल ही में भारत को स्वतंत्र हुए 70 वर्ष पूरे हुए हैं। बीते वर्षों पर एक नजर डालने पर पता लगता है कि हमने क्या पाया है और संजोए भविष्य के सपनों की दिशा में उनकी क्या सार्थकता है? क्या हमने इन वर्षों में भारत के लिए समग्र धारणीय विकास की नींव तैयार की है या ऐसा कुछ किया है, जिसे पर्यावरण की शुद्धि एवं विश्व शांति के लिए योगदान कहा जा सके?
भारत की 70 वर्षों की यात्रा के बाद आज के भारत को तीन युग्मों के आधार पर जाँचे जाने का प्रयत्न किया जा सकता है।
- आकांक्षाएं बनाम प्राप्ति
वर्तमान भारत युवा पीढ़ी का भारत है। जनसंख्या का 60 प्रतिशत 30 से कम की उम्र का है। इस युवा पीढ़ी को शिक्षा के वर्ष अधिक मिले हैं। उनके लिए आज मीडिया और इंटरनेट तक पहुँच आसान है। स्थान परिवर्तन के अच्छे साधन हैं। इन सबके कारण उनकी आकांक्षाएं आसमान छू रही हैं। लेकिन प्राप्ति का वास्तविक स्तर क्या है? उदाहरण के तौर पर अगर वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट को देखें, तो पता लगता है कि स्कूलों में पजीकरण का प्रतिशत उच्च स्तर तक पहुँचने के बाद भी कक्षा आठ के चार में से एक विद्यार्थी को कक्षा 2 की पुस्तक भी पढ़नी नहीं आती।
शिक्षा के ऐसे स्तर के साथ हम अपनी युवा पीढ़ी को आगे कैसे ले जा पाएंगे? आए दिन स्कूल छोड़ने वाले बच्चे या युवा ही उपद्रवियों के समूह बढ़ाते जा रहे हैं।इन सब पर नियंत्रण के लिए और अपनी युवा पीढ़ी को सकारात्मक दिशा में रखने के लिए ऐसा राष्ट्रीय मिशन तैयार करने की आवश्यकता है, जो कौशल विकास के साथ-साथ स्व-रोजगार के लिए उन्हें तैयार करे। उन्हें उद्यमिता के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दे। स्टार्ट-अप के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराए। इन सबके बगैर भारत के लिए समग्र धारणीय विकास के लक्ष्य को पाना कठिन है।
- अधिकार बनाम कत्र्तव्य
पिछले दो दशकों में भारतीय जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता बढ़ी है। परन्तु इन सबके बीच उत्तरदायित्व की भावना वहीं टिकी हुई है, जहाँ वह पहले थी। हममें से अधिकांश लोग उस संस्थागत ढांचे के संरक्षण का प्रयास नहीं करते, जो हमारे अधिकारों की रक्षा एवं प्रोत्साहन के लिए आवश्यक होता है। कितने शिक्षक नियमित रूप से पढ़ाने का प्रयत्न करते हैं या हममें से कितने लोग पर्यावरण की रक्षा के लिए कचरा निष्पादन के साधनों पर ध्यान देते हैं?धारणीय विकास के लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में यह कैसी विषमता है? जब तक हमारा सार्वजनकि जीवन पूर्ण रूप से उत्तरदायी नहीं बनता, तब तक हमारी सार्वजनिक सेवाओं में सुधार नहीं किया जा सकता।
- तकनीक बनाम मिथक
आज का युग तकनीकी का युग है। अधिकांश लोग ऐसे हैं, जो मानते हैं कि विज्ञान के द्वारा प्रकृति पर विजय पाई जा सकती है। विज्ञान की मदद से आज हमने जीवनकाल बढ़ा लिया है। जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी कर ली है। परन्तु तकनीकी विकास धन पर आधारित होता है। संसाधनों के अरक्षणीय बंटवारे से हम प्रकृति की विपरीत दिशा में जा रहे हैं।वैज्ञानिक प्रगति के साथ आज भी कुछ लोगों को इस बात पर विश्वास है कि मानव जीवन ऐसी शक्तियों के अधीन है, जिन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि हमारी चेतना सीमित है। विज्ञान की पहुँच अधूरी है और इस पर आधारित तकनीक अनदेखे या अनसोचे परिणामों से भरी पड़ी है।पूरा मामला संतुलन का है। जब तक प्रत्येक युग्म में एक तादात्म्य नहीं बन पाता, तब तक हम एक अपूर्ण राष्ट्र बने रहेंगे। ऐसी स्थितियों में एक समग्र धारणीय विकास के लक्ष्य को पाना कठिन होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित विजय महाजन के लेख पर आधारित।