संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए भारत का एजेंडा

Afeias
26 Aug 2019
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Date:26-08-19

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की अस्थायी सदस्यता सीट के लिए जून, 2020 में चुनाव होने हैं । 2021-22 की इस दो वर्षीय कार्यावधि के लिए भारत की मजबूत दावेदारी है। इसके मिलने पर हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना ही भारत का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। ऐसा करने में अपने देश का ही कल्याण होगा और समृद्धि बढ़ेगी।

भारत की इस सदस्यता के इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलता है कि सुरक्षा परिषद् में भारत की सदस्यता कुल 14 वर्षों की रही है । 10 वर्षों के अंतराल के बाद वह 2021-22 की सदस्यता के लिए आवेदन कर रहा है। यह वह उपयुक्त समय है, जब भारत अपने को एक जिम्मेदार राष्ट्र की छवि का जामा पहना सकता है।

एक नजर भारतीय स्थिति पर

  • वर्र्तमान में भारत पश्चिमी और पूर्वी एशियाई देशों में चल रहे विद्रोह, आतंकवाद, मानव तस्करी, नशीले पदार्थों की तस्करी, एवं शक्ति-संघर्ष आदि समस्याओं से पीड़ित है। सीरिया, ईराक, अफगानिस्तान, कोरिया, ये सभी ऐसे देश हैं, जो अस्थिरता से घिरे हुए हैं।
  • पश्चिमी देश एक नए राष्ट्रवाद की भावना को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। भय, लोकलुभावनवाद, ध्रुवीकरण और अति राष्ट्रवाद ने कई देशों में पैर पसार लिए हैं।
  • प्राइस वाटरहाउस कूपर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक चीन विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा। भारत का स्थान दूसरे नंबर पर होगा।

भारत का मुख्य लक्ष्य क्या होना चाहिए ?

  1. भारत को चाहिए कि वह सुरक्षा परिषद् के सिद्धांतों को लागू करने के संकट से दूर रहने में मदद करे। अभी तक इस प्रकार के हस्तक्षेप का नतीजा अच्छा नहीं निकला है।

अंतरराष्ट्रीय तंत्र की जटिलता और नाजुक स्थिति, जो आने वाले समय में और अधिक अनिश्चित और संघर्षमय हो सकती है, को देखते हुए नियमाधारित वैश्विक व्यवस्था के लिए काम करना चाहिए। भारत का एजेंडा धारणीय विकास और जनकल्याण पर केन्द्रित होना चाहिए।

  1. सुरक्षा परिषद् के प्रतिबंधों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के प्रति कदम उठाने के लिए सुरक्षा परिषद् प्रतिबंध समिति की मदद करनी चाहिए। सबके अपने संकीर्ण राष्ट्रीय हितों के चलते सुरक्षा परिषद् बहुपक्षीय कार्रवाई नहीं कर पाता है।
  1. विश्व की बड़ी शक्तियों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं। अतः वह कानून के शासन, संवैधानिकता और तार्किक अंतर्राष्ट्रीयवाद के लिए देशों का नेतृत्व कर सकता है। भारत को अपना गैर वाला रवैया छोड़ते हुए देशों के बीच आम सहमति वाला माहौल तैयार करने पर काम करना चाहिए। इसके बाद ही बड़े देश जलवायु परिवर्तन, निरस्त्रीकरण, आतंकवाद तथा व्यापार और विकास पर मिलकर काम कर सकते हैं।

नियमाधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से भारत की प्रगति में ही मदद मिलेगी। बहुपक्षीय नैतिकता का वातावरण बन सकेगा। पड़ोसियों से मजबूत और स्थिर संबंधों के बिना भारत विश्व मंच पर अपना स्थान नहीं बना सकता। अतः सुरक्षा परिषद् में अपनी जगह बनाने के साथ ही भारत को इस मोर्चे पर भी काम करना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित जयंत प्रसाद के लेख पर आधारित। 18 जुलाई, 2019