शहरों का रूपांतरण कैसे हो ?

Afeias
29 Mar 2017
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Date:29-03-17

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आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 ने भारत में शहरीकरण और उससे संबंधित चुनौतियों के बारे में चार मुख्य तथ्य प्रस्तुत किए हैं –

  • भारत में शहरीकरण की अहमियत में कोई कमी नहीं है। केवल उसके विकास का तरीका अलग है। आम धारणा से अलग, हमारे देश में शहरीकरण का स्तर और उसका फैलाव अन्य देशों की तरह ही करने की नीति है। व्यापक स्तर पर देखें, तो शहरीकरण का स्तर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के साथ बढ़ा है।
  • अन्य देशों में अगर शहरीकरण के सामान्य विकास पर नज़र डालें, तो भारत में शहरीकरण का तरीका कुछ भिन्न लगता है। जिफ्फ के सिद्धांत के अनुसार सबसे अधिक आबादी वाले शहर को आबादी में दूसरे और तीसरे नंबर के शहरों से क्रमशः दुगुने और तिगुने आकार का होना चाहिए। लेकिन हमारे यहाँ ऐसा नहीं है। हमारे देश में छोटे शहर तो आकार में छोटे हैं ही, बड़े शहर भी आकार में छोटे हैं।
  • हमारे यहाँ भूमि प्रबंधन असमान है। बड़े शहरों के सीमित आकार का यही एक बड़ा कारण है। भूमि प्रबंधन खराब होने से बाज़ार अव्यवस्थित है। उनके किराए अनाप-शनाप हैं। लोग उन्हें वहन नहीं कर पाते। इसलिए अपनी पसंद के शहरों में जाकर बसना लोगों के लिए बहुत मुश्किल है।

दूसरे, हमारे शहरों में बुनियादी ढांचो की बेहद कमी है। इसके चलते उपलब्ध ढांचों पर बोझ बहुत ज्यादा है।

  • नगरों की क्षमता बढ़ाने का सीधा संबंध आर्थिक एवं व्यक्तिगत सेवाओं की उपलब्धता से है। जनाग्रह ने 21 शहरी निकायों का आकलन किया और यह पाया कि शहरों की क्षमता बढ़ाने और सेवाओं के बीच का आपसी संबंध चार कारकों पर निर्भर करता है- स्वच्छ जल, सीवर लाइन, सार्वजनिक शौचालय एवं दूषित जल का उचित निष्कासन।
  • शहरों में बेहतर सेवाओं के लिए पर्याप्त धनराशि और कर्मचारियों के बीच का संतुलन बनाए रखने की नितांत आवश्यकता होती है। इन दो तत्वों के अलावा शहरी निकायों की संसाधन जुटाने की क्षमता बहुत मायने रखती है। जितने ज़्यादा संसाधन होंगे, परिणाम उतने ही अच्छे मिलेंगे।
  • शहरी निकायों को आर्थिक कोष में वृद्धि के लिए निर्धारित करों के अलावा भी रास्ते ढूंढने होंगे। हमारे यहाँ संसाधन जुटाने के अन्य उपायों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।
  • मुंबई और पुणे जैसे शहरों ने इस मामले में उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। इन शहरी निकायों में निर्धारित करों से आय बहुत कम होती है। इन्होंने आय के अन्य साधन ढूंढे और सेवाओं को सुधारा। वहीं कानपुर और देहरादून जैसे शहरी निकायों के पास करों से आय की अधिकता है, लेकिन ये आय के अन्य साधनों में वृद्धि नहीं कर पाए। जाहिर है कि संसाधनों में वृद्धि करके ही बेहतर सेवाएं दी जा सकती हैं।
  • शहरी निकायों में संपत्ति कर की उगाही उचित क्षमता में नहीं की जाती है। संपत्तियों के मूल्य का सही आकलन न होना, उगाही में ढील, संपत्ति का मूल्य के अनुसार सूचीबद्ध न होना, आदि कुछ ऐसी खामिया हैं, जिनके चलते संपत्ति कर को आय के तरल माध्यम के रूप में नहीं लिया जाता है।

सैटेलाइट इमेज के जरिए किए गए आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि जयपुर और बेंगलूरू जैसे शहर संपत्तियों से केवल 5-20% तक के ही कर की उगाही कर पाते हैं।शहरीकरण से जुड़े इन चार कारकों के अलावा स्थानीय निकायों को शक्ति एवं संसाधन जुटाने के अधिकार देने में राज्य सरकारों की विमुखता एक रोड़ा है। प्रोफेसर राजा चलैया का कथन सही लगता है कि ‘हर कोई विकेंद्रीकरण चाहता है, परंतु केवल अपने स्तर तक।‘ उम्मीद की जा सकती है कि वित्त आयोग अब स्थानीय निकायों को संसाधन जुटाने के अधिक अधिकार दे सकेगा।

नगर निगमों को करों के द्वारा आय को पूरा करने की कोशिश करनी होगी। सैटेलाइट आधारित तकनीक के इस्तेमाल से शहरी संपत्तियों का सही ब्योरा रखकर करों की उगाही करनी होगी।जैसे राज्य अपनी प्रगति के लिए आपस में होड़ करते रहते हैं, वैसे ही शहरों के बीच भी प्रगति की होड़ होनी चाहिए। उत्तरदायित्व  संभालते और संसाधनों से लैस नगर, प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद की धुरी बन सकते हैं।

इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित अरविंद सुब्रह्यण्यम के लेख पर आधारित।