विश्व के बदलते परिदृश्य में भारत
Date:20-04-20 To Download Click Here.
कोविड-19 जैसी महामारी के खत्म होने के साथ ही विश्व अनेक संकटों का सामना कर रहा होगा। शक्ति का धु्रवीकरण बदल चुका होगा। वैश्विक संस्थान अनेक प्रकार के दबाव का सामना कर रहे होंगे। जबकि राष्ट्रवादी भावनाओं को संजोने वाले अनेक राष्ट्र केन्द्रीय भूमिका में आ रहे होंगे। इसके दो कारण हैं। एक, लगभग सभी देश कोविड-19 के हमले को अपने दम पर लड़ रहे हैं; और दूसरे चीन के कार्यों को प्रभावित करने में वैश्विक संस्थानों की विफलता से जन्मी आर्थिक गिरावट।
वायरस का प्रसार भले ही वैश्विक रहा है, परन्तु इसके खिलाफ लड़ाई राष्ट्रीय रही है। प्रत्येक देश की सरकार को इस संकट से निपटने के लिए अपने तरीके विकसित करने पर मजबूर होना पड़ा है। इस मामले में भारत कोई अपवाद नहीं है। अगर दक्षिण कोरिया ने अपने मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र से यह युद्ध लड़ा है, तो भारत ने प्रशासनिक तंत्र के दम पर। हमने सामाजिक दूरी और संपर्क अनुरेखण का कड़ाई से पालन किया है। इस संदर्भ में तीन मुख्य बिन्दुओं पर गौर किया जाना चाहिए।
1) औपनिवेश युगीन जिला प्रशासन प्रणाली की प्रभावशीलता पर भरोसा। कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी की त्रिमूर्ति कोर यूनिट को ही अंततः लॉकडाउन सुनिश्चित करने और लागू करने के लिए तैनात किया गया है।
2) पुलिस बल पर आधारित संपर्क-ट्रेसिंग की गहनता में छानबीन करना। तब्लीगी जमात के गुट का पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास चल रहे हैं। विश्व के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में ऐसा कर पाने का प्रयास एक बहुत बड़ा उदाहरण है।
3) हमारी आपदा प्रबंधन संरचना का ठोस होना। यह प्रणाली पिछले एक दशक में विकसित हुई है, और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित कुछ राज्यों में मजबूत हो गई है। इसके लिए ओडिशा का उदाहरण लिया जा सकता है।
व्यापक स्तर पर देखें, तो अगर भारत इस चुनौती का बखूबी सामना करने में सक्षम है, तो यह मानना पड़ेगा कि हमारा सरकारी प्रशासनिक तंत्र सक्षम है। दूसरे शब्दों में कहें, तो देश एक मजबूत शक्ति के रूप में उभरा है।
दूसरी ओर, चीन को इस आपदा के लिए दोषी ठहराना एक और बात है, परन्तु असली समस्या तो यह है कि इस महामारी ने चीन पर देशों की बढ़ती आर्थिक निर्भरता को उजागर कर दिया है। अब लगभग सभी देशों के लिए इससे बाहर आना एक चुनौती बन गई है।
आपूर्ति और उपकरणों के लिए चीन पर निर्भर देशों को बीजिंग से जूझते रहना होगा। भारत को भी सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य उपकरणों की आपूर्ति पर विचार करना होगा।
चीन का बोलबाला कुछ इस तरह का है कि अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र दोनों ही उस पर दंडात्मक कार्यवाही करने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं कर सके हैं।
आपूर्ति या स्वास्थ्य पक्ष पर चीन को प्रभावित करने में सक्षम किसी मध्यस्थ के न होने के कारण इसे देशों की सरकारों के व्यक्तिगत निर्णय पर छोड़ दिया गया है। इसने भारत जैसे देशों को घरेलू स्रोतों को तलाशने और उन पर निर्भरता बढ़ाने के द्वार खोल दिए हैं।
अमेरिका जैसे देशों की भी चीन पर बढ़ती निर्भरता ने महामारी से निपटने में उसके हाथ बांध रखे हैं।
इस पृष्ठभूमि में, देशों के लिए घरेलू विनिर्माण के लिए तार्किक रूप से कदम उठाना तर्कसंगत है। राजनीतिक हस्तक्षेप से सप्लाई चेन के विकल्प ढूंढने होंगे। भारत की पोस्ट-लॉकडाउन रणनीति के अनुसार खुद को स्थिति के अनुसार बदलने की योजना है, ताकि दबाव में चल रही घरेलू आर्थिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सके।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित प्रणव ढाल सामंत के लेख पर आधारित। 7 अप्रैल, 2020