वर्तमान सरकार की विदेश नीति
Date:30-01-19 To Download Click Here.
हाल के कुछ वर्षों में, 2014 में नई सरकार के गठन के साथ ही दशकों से चली आ रही देश की विदेश नीति में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिले हैं। पहले की हमारी विदेश नीति या दूसरे शब्दों में कहें तो नेहरूवादी आम सहमति की गुटनिरपेक्ष नीति में एकाएक परिवर्तन कर दिया गया है। पूर्व की हमारी संकुचित और आत्म-सीमित नीति, जो विश्व को एक जाल की तरह देखती थी; अब उसे अवसर के रूप में देखने लगी है। रामचन्द्र गुहा की पुस्तक ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ से पता चलता है कि नेहरूवादी विदेश नीति उस समय भी विवादास्पद रही थी। परन्तु इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में यह नेहरुवादी ढर्रे पर ही चलती रही। वर्तमान में भारत, न केवल विश्व के घटनाक्रम में बढ़-चढ़कर भागीदार बना हुआ है, बल्कि विश्व की दिशा-परिवर्तन का भी एक हिस्सा बनने के प्रयत्न में है।
मोदी सरकार ने विदेश नीति में उपनिवेशवादी और शीतयुद्ध वाली मानसिकता को हटाकर, विश्व के एक बड़े भाग से संपर्क साधने वाली नीति का परिचय दिया है।
- विदेश नीति में आए परिवर्तन का सबसे अच्छा उदाहरण पाकिस्तान के प्रति अपनाए गए दृढ़ रवैये के रूप में देखा जा सकता है। भारत ने जिस प्रकार वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग खड़ा कर दिया है; उससे पड़ोसी देश पर हर प्रकार के दबाव पड़ने शुरू हो सके हैं। पूर्व में, पाकिस्तान अपने पैंतरेबाजी से भारत को हैरान-परेशान करता चला आ रहा था।
- बांग्लादेश के साथ भूमि और जल सीमा-विवादों का निपटारा करके संबंधों को सौहार्दपूर्ण बना लेना एक बड़ी उपलब्धि रही है। ये ऐसे विवाद थे, जिन्हें चीन ‘इतिहास से चली आ रही समस्या’ की श्रेणी में रखता था।
- चीन और अमेरिका के व्यापार-युद्ध में भारत ने गुट-निरपेक्षता वाली नीति को नहीं अपनाया है। चीन से उसका सीमा-विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है, या चीन इसे जानबूझकर समाप्त नहीं करना चाहता है। कई अवसरों पर चीन ने अपना झुकाव पाकिस्तान की ओर दिखाते हुए, अंतराष्ट्रीय मंचों पर भारत के लिए अवरोध उत्पन्न किए हैं। उसने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की सदस्यता का विरोध किया है। व्यापारिक परिदृश्य में भी चीन ने भारत की वस्तुओं और सेवाओं पर रोक लगाकर भारत के व्यापारिक घाटे को बढ़ाया है।
मोदी सरकार ने चीन के बेल्ट रोड प्रस्ताव को नामंजूर करके, उसकी भारत-विरोधी नीतियों का जवाब देने का प्रयत्न किया है। भारत के इस कदम का विश्व के कई देशों ने स्वागत किया है। इसी प्रकार डोकलाम सीमा-विवाद में भारत ने 73 दिनों के गतिरोध का दृढ़ता से सामना किया। चीन की दादागिरी के सामने घुटने नहीं टेके।
नेपाल के मामले में भारत को नाकामी का सामना करना पड़ा है, परन्तु उससे भी संबंध सुधार की ही ओर हैं।
विदेश नीति का आधार आर्थिक भूमि होती है। अगर भारत इस मामले में पुनरुत्थानशील रहा होता, तो विदेश नीति का आधा काम तो अपने आप ही सम्पन्न हो चुका होता। परन्तु दुखःद पक्ष यह है कि वर्तमान सरकार की आर्थिक नीति का ढांचा मजबूत नहीं है। अतः विदेश नीति को लकर उत्साह नहीं दिखाया जा सकता।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित स्वागतो गांगुली के लेख पर आधारित। 19 दिसम्बर, 2018