मांटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट के 100 वर्ष

Afeias
07 Aug 2018
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Date:07-08-18

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हाल ही मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के 100 वर्ष पूरे हुए हैं। तत्कालीन भारतमंत्री गुडविन मांटेग्यु ने अगस्त, 2017 में ब्रिटिश संसद में घोषणा की थी कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में ‘उत्तरदायी शासन’ की स्थापना करना है। उन्होंने ब्रिटिश काल के भारतीय सुशासन में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाने की वकालत की थी। इस घोषणा के लगभग एक वर्ष बाद मांटेग्यू और तत्कालीन गवर्नर जनरल चेम्सफोर्ड ने जुलाई, 1918 में इस प्रस्ताव को प्रकाशित किया।

इस घोषणा को भारतीय इतिहास में एक युग का अंत और एक नवीन युग का प्रारंभ माना गया, क्योंकि इसके द्वारा भारत में कुछ प्रवर्त्तनकारी प्रशासनिक बदलाव हुए। रिपोर्ट में स्थानीय प्रशासन एवं विधायिका को केन्द्रीय नियंत्रण से स्वतंत्र करके, प्रांतों में क्रमशः उत्तरदायी शासन लागू करने का प्रस्ताव था। मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड समिति ने इस संदर्भ में मद्रास प्रेसीडेंसी का दौरा किया। अनेक नेताओं के मत लिए। ‘जस्टिस मूवमेंट 1917 नामक पुस्तक से पता चलता है कि उस समय की जस्टिस पार्टी के वरिष्ठ नेता सर पित्ती त्यागराया ने समिति के समक्ष मांग रखी थी कि ‘हमें अपनी स्थानीय समस्याओं का निराकरण करने के लिए स्थानीय निकायों या म्यूनिसिपलिटी आदि के गठन की स्वायत्तता दी जाए।’

उन्होंने यह भी मांग रखी कि प्रेसीडेंसी के प्रशासन को स्थानीय विधायिका को हस्तांतरित कर दिया जाए। फलतः मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट में सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू की गई, और स्व-शासन के लिए उठती आवाजों को सुन लिया गया। इस रिपोर्ट ने भारत के सांविधानिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उत्तरदायी शासन की नींव रखी और स्पष्ट कर दिया कि ‘भारत सरकार, संसद के प्रति पूर्ण रूप से उत्तरदायी रहेगी।’

इस प्रकार भारत में ‘उत्तरदायी शासन’ की शुरुआत हुई।

  • केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना हुई।
  • केन्द्र में प्रत्यक्ष निर्वाचन व्यवस्था शुरु हुई।
  • प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई।
  • लोक सेवा आयोग का गठन हुआ।
  • पहली बार महिलाओं को सीमित परन्तु मताधिकार मिला।
  • केन्द्रीय बजट को राज्य के बजट से अलग किया गया।

इन सुधारों के साथ इस अधिनियम में अनेक कमियां थीं, और यह भारतीयों की आकांक्षाओं को एक सिरे से नकार रहा था। मांटेग्यू-चेम्पफोर्ड रिपोर्ट ही 1935 के भारत सरकार अधिनियम का आधार बनी। इन सुधारों की पृष्ठभूमि पर ही उत्तरदायी प्रशासन, प्रांतीय स्वशासन तथा संघीय स्वरूप की व्यवस्था की गई। केन्द्र में जहाँ द्विसदनीय व्यवस्थापिका की व्यवस्था हुई, वहीं केन्द्र की कार्यकारी परिषद् में भारतीयों को पहले से तिगुना प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान था। आधुनिक भारत के इतिहास में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों ने जिस प्रकार से सांविधानिक विकास को बढ़ावा दिया, उस आधार पर इसे आजादी का महान चार्टर या मैग्नाकार्टा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित मनुराज शुनमुगसुंदरम के लेख पर आधारित। 26 जुलाई, 2018

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