भारत-बांग्लादेश: तीस्ता जल समझौता
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हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच किए गए 36 समझौतों को देखते हुए ऐसा लगता है कि इससे दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। गत आठ वर्षों के बाद दोनों देशों के बीच ऐसी गर्माहट देखने को मिली है। भारत और बांग्लादेश के बीच आर्थिक, रक्षा, विद्युत एवं परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग हेतु समझौते हुए हैं। इन सबके बीच तीस्ता जल समझौता दोनों देशों के बीच में अटका हुआ है। इसका कारण पश्चिम बंगाल राज्य सरकार का विरोधी रूख जिम्मेदार है।
- दोनो देशों के बीच बहने वाली 57 नदियों में से 54 नदियों के जल का इस्तेमाल बांग्लादेश भी करता है। गंगा, ब्रह्यपुत्र, मेघना नद्य तंत्र के अलावा तीस्ता ऐसी चैथी बड़ी नदी है, जिसके जल का बंटवारा दोनों देशों के बीच होता है। इसका 39% भारत तथा 36%बांग्लादेश इस्तेमाल करता है। बांग्लादेश इसमें बराबर की साझेदारी चाहता है।
- 1983 में तीस्ता के जल के संबंध में दोनों देशों में एक अस्थायी जल समझौता किया गया था। सन् 2011 में भी मनमोहन सिंह सरकार ने बांग्लादेश को तीस्ता का5% जल देने का वादा किया था। लेकिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसके विरोध में हैं। हांलाकि अपने बांग्लादेश दौरे पर उन्होंने वहाँ की जनता को तीस्ता का जल प्रदान करने का आश्वासन दिया था। लेकिन इस मामले पर उनका ढुलमुल रवैया बना रहा है।
- बांग्लादेश में तीस्ता की बाढ़ से प्रभावित होने वाला भूभाग लगभग 2,750 वर्ग किमी. है। इस उपजाऊ भूमि का लाभ एक करोड़ बांग्लादेशियों को मिलता है। जीविका के अलावा बांग्लादेश की उपज का 14% भाग इस नदी के बहाव पर निर्भर करता है। बांग्लादेश के करोड़ों लोगों के जीवन को देखते हुए तीस्ता नदी जल बंटवारे पर अमल किया जाना आवश्यक लगता है।
- मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीस्ता जल से संबंधित एक समिति गठित की थी, जिसने बांग्लादेश के पक्ष में अपनी रिपोर्ट दी है। बांग्लादेश के एक जलविज्ञानी ने तो यहाँ तक कहा है कि ‘भारत ने गज़लडोबा बैराज के सारे गेट्स बंद करके बांग्लादेश के हिस्से वाली नदी को बिल्कुल सुखा दिया है।‘ ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस जल संधि के ऐवज में ममता बनर्जी केंद्र सरकार से बंगाल के लिए कोई आर्थिक लाभ लेना चाहती हैं। यही कारण है कि वे इस समझौते पर अमल नहीं होने दे रही हैं।
बहरहाल, बंगाल सरकार के इस दोहरे रवैये में बांग्लादेश की जनता मारी जा रही है। दूसरी ओर, 2019 के चुनाव में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की साख चुनौती पर लगी हुई है। भारत के साथ संबंधों को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के बाद भी तीस्ता जल के कारण उन पर संकट मंडरा रहा है।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित सैयद मुनीर खसरू के लेख पर आधारित।