भारत की बदलती स्वास्थ्य स्थिति की जरूरतें?
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अब प्रत्येक वर्ष डेंगू और चिकनगुनिया के कारण हमारी उत्पादक क्षमता एवं स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च पर बहुत प्रभाव पड़ने लगा है। ये बिमारियां हमारी योजनाओं की स्थिति का एक तरह से साक्ष्य प्रस्तुत कर रही हैं कि हमारी व्यवस्थाएं कितनी लचर हैं।
क्या किया जाना चाहिए?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उत्तम स्वास्थ सेवाओं के लिए दवाएं, सूचना, सेवा, स्वास्थ्य कार्यदल, वित्त एवं प्रशासन जैसे छः मानदण्ड स्थापित किए हैं। हम जानते हैं कि सस्ती जेनेरिक दवाएं बनाने के अलावा भारत बाकी के मानदण्डों पर खरा नहीं उतरता।
- हमें बीमारियों के रोकथाम, निदान और उपचार के साथ-साथ बीमारी पर निगरानी, डाटा एकत्र करना, स्वास्थ्य क्षेत्र में आधुनिक शोध, स्वास्थ्य सेवा के लिए कार्यदलों का प्रशिक्षण, पर्याप्त स्टाफ, सभी लोगों के लिए पोषण, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, सुरक्षित एवं प्रभावशाली दवाओं की उपलब्धता तथा स्वास्थ्य एवं पोषण के लिए सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों की भागीदारी जैसे मुद्दों पर काम करना होगा।
- घर-घर में स्वास्थ्य एवं पर्याप्त पोषण की पहुंच के लिए मोहल्ला क्लीनिक की अवधारणा बहुत अच्छी है। परंतु इसका कार्यान्वयन सही ढंग से नहीं किया गया है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की राह पर चलने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ाने का प्रयास होना चाहिए।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एवं एकीकृत बाल विकास योजना को अधिक आर्थिक सहयोग देना होगा।
सामाजिक क्षेत्र में जन-भागीदारी को बढ़ाकर हम अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर सकते हैं। भारत के बदलते प्रजातांत्रिक एवं जानपदिक रोग विज्ञानी परिवेश के परिपेक्ष्य में सरकार की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। इसके लिए गंभीर प्रयास की आवश्यकता होगी।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित कपिल सिब्बल के लेख पर आधारित