भारतीय विनिर्माण उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाना जरूरी है
Date:07-07-20 To Download Click Here.
भारत में योजनाबद्ध विकास की शुरूआत 70 वर्ष पहले ही हो गई थी। इसका उद्देश्य देश में औद्योगिकीकरण के माध्यम से समृद्धि बढ़ाना और निर्धनता को दूर करना था। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ऐसी औद्योगिक नीतियां तैयार की गईं , जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की अग्रणी भूमिका थी। 1991 के संकट के दौरान बड़े नीतिगत बदलाव हुए , लेकिन औद्योगिक विकास का अपेक्षित लक्ष्य अभी भी प्राप्त नहीं किया जा सका। 2014 में आई मोदी सरकार ने ऐसे अनेक सुधार किए , जिनसे विनिर्माण उद्योग में काफी सुधार हुआ। आज भी ऐसे कई देशों से हमारे मधुर संबंध हैं , जो विनिर्माण में निवेश की पर्याप्त क्षमता रखते हैं , फिर भी वियतनाम जैसे देशों की तरह वे भारत में निवेश के इच्छुक क्यों नहीं हैं ?
इस प्रश्न के उत्तर में तीन कारण छिपे हुए हैं , जो आपस में जुड़े हुए भी हैं। एक तो भारत की औद्योगिक नीति वैश्विक प्रतिस्पिर्धा को समझने में नाकाम रही है। दूसरे , हमें इस बात की समझ नहीं है कि इसे कैसे हासिल किया जाए। और तीसरे विनिर्माण की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में शामिल हुए बिना हम औद्योगिक विकास को बनाए नहीं रख सकते।
- प्रतिस्पर्धी बनने के लिए जरूरी है कि हमारे नीति निर्माताओं को इसका महत्व समझ में आए , और वे भारत की मजबूती और समृध्दि की दिशा में नीतियां बनाएं।
1991 के सुधारों में विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड का गठन भी किया गया था,जो विनिर्माण में किसी प्रकार का निवेश आकर्षित करने में नाकाम रहा।
- प्रतिस्पर्धी बने रहने से उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों का मूल्य लगातार बढ़ता जाता है। इससे विनिर्मित उत्पादों के वर्तमान और भविष्य के उपभोक्ताओं को लाभ होता है। साथ ही उद्योगों में मांग बढ़ती है , और उनका विकास होता है। प्रतिस्पर्धी विनिर्माण से निर्यात को गति मिलती है , तो क्रमशः विनिर्माण में प्रगति और रोजगार में वृध्दि करती है।
- भारत में औद्योगिक नीति का अभी तक का मॉडल प्रतिस्पर्धा को सीमित करने वाला सार्वजनिक उपक्रमों पर आधारित था , जिसे अब निजी क्षेत्र की प्रमुखता में चलाया जाना है।
- अब नौकरशाहों को निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी वातावरण तैयार करने की दिशा में नीतियां बनानी होगीं।
- इस हेतु सभी नियम और आचरण निर्धारित करने होंगे।
- औद्योगिक विकास से जुड़े प्रशासकों को प्रतिस्पर्धा के बारे में जानकारी रखते हुए उसके प्रोत्साहित करने के उपाय ढूंढ़ने पड़ेंगे।
- क्षेत्र का सिलसिलेवार ज्ञान होना आवश्यक होगा।
- अभी तक इस क्षेत्र में कालेधन और भ्रष्टाचार की वजह से जो अविश्वास का वातावरण बन गया था , उसे समाप्त करते हुए उद्योगपतियों को विश्वास का वातावरण देना होगा।
- प्रतिस्पर्धी विनिर्माण में कीमतों की गिरावट बनी रहना जरूरी है। उत्पादन की लागत को संतुलित रखने के लिए उत्पाद की कीमत को नहीं बढ़ाया जा सकता।
- निर्णय लेने में विलंब या उद्योगों के भुगतान में देर होने का सीधा प्रभाव प्रतिस्पर्धा पर पड़ता है।
- साथ ही उत्पादन की गुणवत्ता और विश्वसनीयता भी जरूरी है।
नीतियां ऐसी हों , जो गुणवत्ता अच्छी रखने पर जोर दे। आपूर्ति श्रृंखला दुरुस्त रखें। उत्पादित वस्तुओं पर अत्यधिक कर न लगाया जाए।
भारत को विश्व स्तर का विनिर्माण केन्द्र बनाने हेतु एकजुट होना होगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित आर.सी.भार्गव के लेख पर आधारित। 27 जून , 2020