भारतीय कृषक की आय का मुद्दा

Afeias
06 Jul 2016
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Date: 06-07-16

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वर्तमान सरकार की प्राथमिकताओं में किसानों की स्थिति में परिवर्तन लाना प्रमुख है।

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना, प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्य, आर्गेनिक कृषि, दालों व तिलहनों में आत्म निर्भरता, नीमजनित यूरिया, राष्ट्रीय कृषि बाजार (म्ट।ड), मोबाइल एप एवं आपदा सहायता जैसी योजनाएं चलाई हैं।

सरकार का प्रमुख लक्ष्य है- किसानों की आय को पाँच वर्षों (सन् 2022 तक) में दुगुना करना। क्या वास्तव में सरकार ऐसा कर पाएगी?

  • नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन एक ऐसी संस्था है, जो कृषकों की परिस्थितियों सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे ऑफ फारमर्स (SAS) के माध्यम से हर दस वर्ष में किसानों की आय का सर्वेक्षण करवाती है। इस संस्था ने 2012-13 में 9 करोड़ कृषि-आधारित परिवारों की आय का ब्योरा लिया था, इस आधार पर इनकी आय औसतन 77,112 रु. प्रतिवर्ष दिखाई गई।
  • सन् 2002-03 में किसानों की औसत आय 25,380 रु. प्रतिवर्ष थी। यह आय 2012-13 में तीन गुना बढ़ गई है। यदि हम इसे दस वर्ष की मिश्रित वार्षिक वृद्धि दर या कंपाऊंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) के हिसाब से देखें, तो उनकी न्यूनतम आय 8 प्रतिशत तक बढ़ी, जबकि वास्तविक आय 3.5 प्रतिशत ही बढ़ी। इसका अर्थ यह हुआ कि न्यूनतम आय को दुगुना होने में छः वर्ष ही लगे, जबकि वास्तविक आय को दुगुना होने में बीच वर्ष लग जाएंगे।
  • पिछले दस वर्षों में भारतीय किसान परिवार की आय का मुख्य साधन कृषि ही रहा है। आय को बढ़ाने में इसका योगदान 46 से बढ़कर 48 प्रतिशत हो गया। जबकि पशुपालन से हुई आय-वृद्धि में जबर्दस्त बदलाव देखने को मिला। यह 4 से बढ़कर 12 प्रतिशत हो गई। गैर कृषि कार्यों या वेतन से होने वाली आय 2002-3 में जो 39 प्रतिशत थी, 2012-13 में घटकर 32 प्रतिशत रह गई।
  • भारत में कृषि योग्य भूमि में से लगभग 67 प्रतिशत किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम भूमि है। ऐसा होने से किसानों को आय बढ़ाने के लिए पशुपालक या दैनिक वेतनभोगी बनना पड़ता है।
  • ऐसी स्थितियों में वर्तमान सरकर पाँच वर्षों में किसानों की न्यूनतम आय को ही दुगुना कर सकती है।
  • सरकार को चाहिए कि अपनी भविष्य की योजनाओं में वह पशुपालन व्यवसाय एवं गाँव में गैर कृषि व्यवसाय की तरफ ध्यान दे। किसानों एवं कृषि श्रमिकों को इन व्यवसायों में कुशल बनाने की आवश्यकता है।
  • चूँकि कृषि ही किसानों की आय का मुख्य साधन है, इसलिए उत्पादकता को बढ़ाने वाली फसलों पर अधिक जोर दिये जाने की जरूरत है।
  • जिस प्रकार सरकार ने दूध को बड़े बाजारों तक पहुँचाने के लिए एक सफल तंत्र बना दिया है, उसी प्रकार फल एवं सब्जी के लिए भी ग्राम-स्तर पर ही ग्रेडिंग, पैकेजिंग एवं वितरण के लिए आधुनिक नेटवर्किंग प्रणाली उपलब्ध कराया जाना चाहिए। मदर डेयरी की ‘सफल’ नामक फल-सब्जी वितरण योजना इसका सफल उदाहरण है।

 

इंडियन एक्सप्रेस में श्री अशोक गुलाटी एवं श्वेता सैनी के लेख पर आधारित