बेल्ट रोड की बाधाएं

Afeias
27 Nov 2018
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Date:27-11-18

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चीन की बेल्ट-रोड नीति का विरोध करने वालों में भारत पहला देश था। इस हेतु मई, 2017 में हुई बैठक में 29 देशों के प्रमुखों या सरकारी प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। रशिया जैसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति और तुर्की के प्रधान भी इस बैठक में शामिल हुए थे। अमेरिका ने इसके लिए अपने संयुक्त सचिव को भेजा था। भारत ने चीन की इस सम्पूर्ण योजना को अपारदर्शी, तथा उपनिवेशवादी बताया था।

भारत का यह भी मानना था कि यह चीन द्वारा अपने भू-राजनैतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए छोटे और नकदी की तंगी से जूझ रहे देशों को ऋण-जाल में फंसाने का प्रयास मात्र है। बेल्ट-रोड शिखर सम्मेलन से पूर्व ही भारत ने अपना आधिकारिक वक्तव्य जारी करते हुए कह दिया था कि ‘‘इस प्रकार की पहल को वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय मानकों, अच्छे प्रशासन, कानून के शासन, पारदर्शिता और समानता पर आधारित होना चाहिए।’’

बेल्ट-रोड के शिखर सम्मेलन में ही यूरोपीय संघ ने यह कहकर इसे खारिज कर दिया था कि इसमें पारदर्शिता की कमी है। साथ ही योजना के सामाजिक व पर्यावरणीय धारणीयता के स्तर पर खरा न उतरने की बात भी कही गई थी। बेल्ट-रोड नीति के तहत चीन के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए अमेरिका ने इसकी तुलना यूरोपीय साम्राज्यवादी नीति से की है। इतना ही नहीं, इसे स्वीकार कर चुके देशों ने धीरे-धीरे इसकी परियोजनाओं का विरोध करके, समझौतें को भंग करना शुरू कर दिया है।

  • पूर्वी अफ्रीका के एक देश जिबूती में चीन ने अपना नौसैनिक अड्डा बनाने के उद्देश्य से पहले जिबूती को ऋण भार से लाद दिया। और अब नौसैनिक अड्डे के लिए चीन को लीज पर जमीन देना उसकी मजबूरी बन गई है।
  • इसी प्रकार से चीन ने पाकिस्तान को भी अपने कब्जे में कर रखा है। आर्थिक तंगी से जूझते पाकिस्तान की मदद करके वह ग्वादर बंदरगाह के नजदीक ही अपना नौसैनिक अड्डा बनाने की फिराक में है। परंतु अब पाकिस्तान ने चीन की कुछ योजनाओं से पीछे हटते हुए उसकी रेल रोड योजना को 2 अरब डॉलर तक सीमित कर दिया है।
  • मालदीव के हिन्द महासागर में पड़ने वाले अनेक द्वीपों पर चीन कब्जा करता जा रहा है। समझौतों की शर्तें अभी बहुत स्पष्ट नहीं की गई हैं। फिर भी इतना तो ज्ञात है ही कि इन द्वीपों के एवज में चीन ने बहुत ही कम धनराशि दी है।
  • चीन की इस विस्तारवादी नीति का विरोध मलेशिया के प्रधानमंत्री ने किया है। उन्होंने चीन द्वारा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के बहाने अपना प्रभाव जमाने की कोशिशों की कड़ी आलोचना की है। अपनी चीन यात्रा के दौरान उन्होंने चीन के साथ हुए 23 अरब डॉलर के समझौतों को रद्द कर दिया है।
  • श्रीलंका ने अपना एक द्वीप चीन को 99 वर्षों की लीज पर दे दिया है। बहुत से देश श्रीलंका के इस समझौते के बाद सतर्क हो गए हैं और चीन के जाल से बाहर निकलने का प्रयत्न कर रहे हैं।
  • बहुत से देश चीन के साथ पूर्व में हुए समझौतों पर फिर से बातचीत करके अपनी भूल सुधारने का प्रयत्न कर रहे हैं। बेल्ट-रोड पहल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, चीन की शर्तों पर विश्व व्यापार के पुनर्निर्माण का प्रयास माना जा रहा है।

चीन के बेल्ट रोड में छिपे मंतव्य को शुरूआत में ही समझकर भारत ने जिस दूरदर्शिता का परिचय दिया है, वह प्रशंसनीय है। ऐसा लगता है कि आने वाले वर्षों में चीन के इस हिंसक रवैये का बढ़ता विरोध, बेल्ट-रोड योजना पर दबाव का कारण बन जाएगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित ब्रह्मा चेलानी के लेख पर आधारित। 29 अक्टूबर, 2018