बेतरतीब भारत

Afeias
10 Jul 2018
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Date:10-07-18

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भारत में जन कल्याण योजनाओं के नाम पर जो गड़बड़झाला चलता रहता है, उसने यहाँ जनकल्याण से अधिक विफलताएं देखी हैं। भारत को लोकहितकारी राज्य बनाने में कई विसंगतियां दिखाई देती हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही हमारे नीति-निर्माताओं ने भारत को लोकहितकारी राज्य बनाने की जद्दोजहद में इस बात को नजरअंदाज किया कि सबसे पहले हम इसे एक मजबूत राष्ट्र के रूप में खड़ा करें। उन्होंने किसी राष्ट्र के लिए आवश्यक संस्थाओं की मजबूती से अधिक जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार को अधिक महत्व दिया।अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ और हितों की सुरक्षा के लिए नीतियों का निर्माण किया था। उन्होंने संस्थाओं का निर्माण इसलिए किया कि वे अपने उपनिवेश में साम्राज्य को यादगार बना सकें। आर्थिक नीतियों का ताना-बाना इस प्रकार बुना गया कि उससे मेनचेस्टर और लंकाशायर के निर्माताओं को लाभ मिल सके। उन्हें कानपुर और मुंबई के व्यापार की चिन्ता नहीं थी।

प्रशासन ऐसा रखा, जो ‘कानून के अंदर स्वतंत्रता’ देने के स्थान पर भारतीयों को दबाने-धमकाने के काम आए। उनकी पुलिस ऐसी थी, जो शायद ही मानवाधिकार की परवाह करती हो। उन्होंने जो कुछ भी भारत में किया, वह इसे अपने साम्राज्य का एक उपनिवेश मानकर किया। तब से लेकर आज तक भारत की राष्ट्र के रूप में वृद्धि करने को लेकर कुछ अधिक नहीं किया गया है। उल्टे हमारे राष्ट्र ने कम समय में ही बहुत सी जिम्मेदारियां ओढ़ ली हैं, जैसे-विकास की अनेक योजनाओं को प्राथमिकता देना, बुनियादी ढांचे से जुड़ी योजनाओं की देखरेख करना, बांधों का निर्माण या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना करना, अर्थव्यवस्था को नियमित करना तथा शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे विषयों को देखना आदि-आदि। स्थितियाँ बद से बदतर होती जा रही हैं। इसका कारण सरकार के कामकाज में भ्रष्टाचार, अनियमितताएं और अक्षमता का होना है। यह एक कमजोर राष्ट्र का राज्यवाद है।

इसका उपचार किसी छोटी-मोटी सरकार या राज्यवाद में कमी करके ढूंढा नहीं जा सकता।  उदाहरण के लिए जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली अप्रभावशाली सिद्ध होने लगी, तब कुछ राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को छोड़कर पूरे देश में 1997 से एक लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली या टी डी पी एस लागू की गई। इसका क्या हश्र हुआ? 2005 में तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोन्टेक सिंह अहलूवालिया ने लिखा कि 58 प्रतिशत के करीब खाद्यान्न गरीबों तक नहीं पहुँचता है, क्योंकि पहचान की कमी, अपारदर्शी संचालन और टीडीपीएस के कार्यान्वयन में कुछ ऐसी अनैतिक प्रथाएं हैं, जो अवरोध पैदा करती हैं। इसके दस वर्ष पश्चात् कैग की एक रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश राज्यों ने टीडीपीएस के संचालन को कम्प्यूटरीकृत करने के काम को निर्धारित अवधि के दो वर्ष पश्चात् तक भी पूरा नहीं किया है।

हमारा तंत्र इस प्रकार से काम करता है। आइंस्टीन के शब्दों में यह किसी एक ही काम को बार-बार करके उससे अलग परिणामों की उम्मीद रखने जैसा पागलपन है। इसी प्रकार आधार कार्ड की शुरुआत की गई। इससे राशन कार्ड, बैंक खातों आदि को जोड़ने में अनेक कठिनाईयां सामने आईं। इसके बाद डाटा की चोरी, निजता की सुरक्षा आदि समस्याएं उठ खड़ी हुई। यहाँ तक कि भूख से मृत्यु तक को आधार से जोड़ा गया। फिर भी हमारी सरकार इसे लागू करने में जुटी हुई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना भी ऐसा ही एक उदाहरण है। इसके परिणाम भी औसत से कम रहे हैं। इसके बावजूद सरकार एक अन्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना जैसी अधिक महत्वाकांक्षी योजना को लक्ष्य करके चल रही है। इसमें यह भी बताया जा रहा है कि आधार कार्ड के माध्यम से गरीब का पैसा वापस हो जाएगा।इसके आधार पर तो यह कहा जा सकता है कि एक राष्ट्र की क्षमता से परे जाकर भी लोकहितकारी राज्य की स्थापना की जा सकती है।

इसका अर्थ यह भी हुआ कि एक राष्ट्र अपनी संस्थाओं में बदलाव किए बिना या प्रशासनिक सुधार किए बिना भी असीमित बोझ उठा सकता है। काँग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग बनाया गया। इसकी लगभग 15 रिपोर्ट आई होंगी। अंतिम रिपोर्ट अप्रैल, 2009 में आई थी। इसके बाद किसी ने भी प्रशासनिक सुधारों; पुलिस या कानूनी सुधारों पर कोई काम किए जाने की बात नहीं सुनी। यह रिपोर्ट हमारे नेताओं की जड़ता की कहानी कहती है। यह बताती है कि हमारे नेताओं, हमारी सरकार या विरोधी दलों को इन सुधारों से कोई सरोकार नहीं है। वे तो नाम बदलने और अन्य भावनात्मक मुद्दों से ही वास्ता रखना चाहते हैं। ब्रिटिश राज से मिला हुआ इंजन जीर्ण-शीर्ण हो चला है। लेकिन उसकी मरम्मत करने की बजाय हमारे नेतागण उसे कल्याणकारी योजनाओं से लादे चले जा रहे हैं। उपसंहार के तौर पर यही कहा जा सकता है कि अव्यवस्था का दूसरा नाम भारत है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रविशंकर कपूर के लेख पर आधारित। 27 जून, 2018