बालश्रम के उन्मूलन की आस

Afeias
01 Sep 2020
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Date:01-09-20

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हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ( इंटरनेशलन लेबर आर्गनाईजेशन – आई एल ओ) के बाल श्रम के घृणित रूपों से निपटने के लिए हुए कन्वेशन 182 को किंगडम ऑफ टांमा के अनुसमर्थन के बाद सार्वमौलिक स्वीकृति मिल गई है। इसका अर्थ है कि आई एल ओ के 187 सदस्य देशों ने बाल श्रम से जुडे घृणित तरीकों को रोकने के लिए कमर कस ली है।

कन्वेशन 182

  • सन् 1999 के वार्षिक अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में इसे अपनाया गया था।
  • यह बच्चों के यौन शोषण , तस्करी , सशस्त्र संघर्ष में तैनाती और उनकी भलाई में अड़चन डालने वाली सभी स्थितियों पर रोक लगाता है।
  • यह 1973 में निर्धारित बाल श्रम की न्यूनतम आयु सीमा को बनाए रखने का प्रयास करता है।
  • आई एल ओ के उपरोक्त दोनों मानकों के तहत , लाखों युवाओं को श्रम की खतरनाक स्थितियों से बचाया जा सका है।
  • इसके परिणामस्वरूप प्राथमिक शिक्षा में नामांकन में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हालांकि अभी भी बाल श्रम में फंसे करोडों बच्चों को बचाने की चुनौती बनी हुई है।

बाल श्रम से जुडे अन्य अंतरराष्ट्रीय कानून

  • कन्वेंशन 182 और 1973 का न्यूनतम आयु कन्वेंशन , आई एल ओ के प्रमुख आठ कन्वेंशन में से है। इन्हें 1998 के कार्यक्षेत्र में मूलभूत सिद्धांतों पर घोषणापत्र की आत्मा का संरक्षक माना जाता रहा है।
  • भारत ने दोनों प्रमुख कन्वेंशन को 2017 में अनुसमर्थन दिया था।

चुनौतियां

  • बाल श्रमिकों की एक बड़ी संख्या को खतरनाक कामों से बारह निकालना बाकी है। 2021 तक बाल श्रम को जड़ से खत्म करने के लक्ष्य को लेकर चला जा रहा है।
  • धारणीय विकास लक्ष्यों में 2025 तक बाल श्रम के उन्मूलन का लक्ष्य है।
  • कोविड-19 महामारी के साथ ही आर्थिक स्तर पर होने वाले व्यापक नुकसान से काम की स्थिति में गिरावट आई है। घरेलू आय कम होने और स्कूल बंद होने से बाल श्रम के एक बार फिर बढ़ जाने की आशंका बनी हुई है।

बाल श्रम की भयावह स्थितियों से निपटने के लिए भारत में अनेक संगठन काम कर रहे हैं। इनमे नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के ‘बचपन’ संगठन के साथ ही केयर इंडिया , आशा चाइल्ड फंड जैसे अनेक संस्थान हैं। इन प्रयासों के अलावा अगर सरकारी स्तर पर सही कदम उठाए जाएं , तो इसकी जल्द रोकथाम की उम्मीद की जा सकती है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 14 अगस्त , 2020