बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल मोटरवाहन समझौता

Afeias
18 May 2017
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Date:18-05-17

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हाल ही में भूटान ने बांग्लादेश, भारत और नेपाल के साथ मोटर वाहन समझौते पर आगे बढ़ने में असमर्थता दिखाई है। यह अवरोध है। इसे समझौते का अंत नहीं माना जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी इन चार देशों में बाधारहित आवागमन को सुचारू बनाने हेतु क्षेत्रीय उपसमूह की योजना बना रहे हैं। ऐसे उपसमूह बनाने का विचार तब उत्पन्न हुआ था, जब पाकिस्तान ने 2014 में काठमांडू के सार्क सम्मेलन में मोटर वाहन समझौते को अस्वीकृत कर दिया था। इस समझौते से इसमें शामिल देशों के व्यावसायिक वाहनों को एक-दूसरे के हाइवे पर आने-जाने की स्वतंत्रता मिल जाती, जो कि व्यापार की उन्नति के लिए श्रेयस्कर था।

बहरहाल, पाकिस्तान के न मानने से भारत, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के अलावा अफगानिस्तान ऐसा देश बचता है, जो पाकिस्तान के नकारात्मक रवैये के कारण वंचित रह जाएगा। गौरतलब है कि सार्क देशों में श्रीलंका और मालदीव भूमि के माध्यम से बाकी देशों से जुड़े हुए नहीं हैं। अब भूटान का रुख देखते हुए बाकी के तीन देशों को यह निर्णय करना है कि वे उसके निर्णय का इंतजार करें या समझौते में तीन देशों के साथ ही आगे बढें।भूटान के पीछे हटने का कारण इस समझौते से होने वाला वायु प्रदूषण और पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन की संभावना है। वहाँ 2018 में चुनाव होने हैं, और वर्तमान सरकार यह नही चाहेगी कि इस मुद्दे के कारण उसे हार का सामना करना पड़े।

फिलहाल की असफलता के बाद भी भारत को अपने प्रयास संरक्षित रखने चाहिए, क्योंकि भूटान की अस्वीकृति राजनीतिक न होकर पर्यावरण संबंधी है। अतः समय के साथ इसमें बदलाव भी आ सकता है। इस मार्ग पर वाहन परीक्षण किए जा चुके हैं, और इस समझौते के महत्व को इन बिंदुओं में समझा जा सकता है –

  • अधिकारियों का मानना है कि इन संपर्कों से समुद्र के 1,000 किमी. के चक्करदार रास्ते का विकल्प लाभकारी होगा।
  • अगर भारत नदी संपर्क को समझौते में शामिल करने को तैयार हो जाए, तो भूटान की पर्यावरणीय समस्या का भी समाधान मिल जाएगा।
  • भारत जिस प्रकार से सभी देशों, खासतौर पर पड़ोसी देशों को साथ लेकर ‘सबका साथ, सबका विकास‘ की नीति पर चल रहा है, उस हिसाब से समझौते का दारोमदार भारत के पलड़े में है कि वह इसे सफल कैसे बनाए।

इसी प्रकार का एक और हाइवे प्रोजेक्ट BCIM यानि बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यामांर के बीच में बनाया जा रहा है। वैसे तो भारत ने चीन के वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को यह कहकर ठुकरा दिया है कि उसका रास्ता पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर जाता है। परंतु अगर कहीं भारत के हितों पर आंच आती है। तो वह इसे बीसीआई एम के जरिए साध सकेगा।वर्तमान में, संपर्क साधन ही विश्व में प्रगति और समृद्धि की पूंजी हैं। इनसे किसी देश के व्यापार और ऊर्जा का विकास जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ में भारत को अपनी भौगोलिक स्थिति का पूरा फायदा उठाना चाहिए।

हिंदू के संपादकीय पर आधारित।