बचपन बचाओ
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हमारे देश में बच्चों की स्थिति की दयनीयता को सभी जानते हैं। जब देश के 43 लाख बच्चे शोषण के शिकार हों, 98 लाख स्कूल न जाते हों, हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता हो, 8.5 लाख बच्चे अपने पहले जन्मदिवस से पहले ही मर जाते हों, तो हम विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र होने का दावा कैसे कर सकते हैं? बच्चों की सुरक्षा से जुड़े ये कुछ ही आंकड़े हैं, जो वास्तविक स्थिति की झलक देते हैं। परंतु क्या ये हमारे मन-मस्तिष्क को हिला देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।?
- बच्चों के अधिकारों से जुड़े कानूनों की कमी नहीं है। एक तरह से कहा जाए तो वे अपने आप में पर्याप्त हैं। परंतु व्यवहार में वे कितने काम में लाए जा रहे हैं, यह संदेहास्पद है।
- निरंतर विकास के लिए सबसे पहले तो हमें कानून में निहित अपने आदर्शों को पहचाना होगा। उनका सम्मान करते हुए जब हम एक समान उद्देश्य की तरफ बढेंगे, तभी बच्चों को उनके अधिकार देने के प्रति जागरूक हो पाएंगे।
- नैतिकता की कमी और बच्चों की स्थिति के प्रति समाजिक एवं राजनैतिक उदासीनता ने ही बच्चो को इस स्थिति में पहुंचा दिया है।
- बलात्कार के शिकार हर तीन लोगों में से एक बच्चा होता है। अगर हमारे सम्मानीय नेता इस बुराई के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया दिखाएं, तो निश्चय ही ऐसे अपराधों में कमी आएगी।
- सन् 2009 के शिक्षा के अधिकार के अनुसार आज यह मौलिक अधिकार बन चुका है। परंतु इसके क्रियान्वयन में ढील से यह उतने प्रभावकारी ढंग से लागू नहीं किया जा सका है।
- बच्चों के शुभचिंतकों को एक मंच पर आना होगा। साथ ही मंत्रीस्तरीय एजेंसियां अगर सहयोग, करें तो सोने में सुहागा हो जायेगा।
- बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियों का निरीक्षण एवं पुनर्वालोकन करके उन्हें कार्यरूप में लाया जाए।
- वर्तमान में बाल सुरक्षा, शिक्षा, बाल-श्रम, स्वास्थ्य, मिड डे-मील तथा पोषण जैसे अनेक पक्षों पर काम किया जा रहा है। इन सबके बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता है।
- सामाजिक संस्थाएं, नेता, सरकार और कार्पोरेट क्षेत्रों की बच्चों के अधिकारों के प्रति जवाबदेही बढ़ानी होगी। इन सबको समान रूप से बच्चों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों की रक्षा करनी होगी। तभी बात बनेगी।
- कल्पना कीजिए कि अगर कार्पोरेट जगत एवं स्थानीय निर्माण उद्योग बाल-श्रम से मुक्त निर्माण कार्य का प्रण ले लें, तो क्या बाल-श्रम को खत्म नहीं किया जा सकता? दरअसल इस प्रकार के अभियानों के प्रति लोगों में वचनबद्धता का अभाव है।
- बचपन की सुरक्षा में आधुनिक तकनीकें भी बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। बच्चों के यौन शोषण और उन पर अश्लील फिल्मों एवं साहित्य को रोकने के लिए साइबर चैकसी को बढ़ाना बेहद जरूरी है। मल्टीमीडिया पोर्टल्स् एवं एप्लीकेशन्स के प्रयोग को बढ़ाकर बच्चों के प्रति अपराध में कमी लाई जा सकती है। चाइल्ड हैल्प लाइन के व्यावहारिक स्परूप को भी उन्नत करने की आवश्यकता है।
- हर बच्चे को शिक्षा और सुरक्षित बचपन का अधिकार देने के लिए विश्वस्तरीय नेताओं और पुरस्कार विजेताओं द्वारा एक सशक्त मंच तैयार करने की जरूरत है। तभी हम सदी के इस बहुत बड़े नैतिक दायित्व का निर्वाह कर सकेंगे।
- इन सब प्रयासों से ऊपर हमें अपने बच्चों ओर युवाओं की मानसिकता को भी बदलने की आवश्यकता है। उनमें इतनी जागरूकता भरनी होगी कि वे अपने अधिकारों और आवश्यकताओं के प्रति देश और विश्व का ध्यान आकर्षिक कर सकें। हमें अपने देश में विश्वस्तरीय नेताओं को तैयार करने के लिए बच्चों के सहयोग, उनकी मांगों और उनके नेतृत्व की बहुत जरूरत है।
समय आ गया है कि हम अपने देश के बच्चों की आवाज को सुनें और समझें।
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित कैलाश सत्यार्थी के लेख पर आधारित।
नोटः– लेखक नोबल पुरस्कार विजेता हैं।
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