निम्न उत्पादकता के जाल से मुक्त होना होगा
Date:02-07-19 To Download Click Here.
2017-18 के कार्यबल सर्वेक्षण की सामयिक रिपोर्ट आ चुकी है। अभी तक आलोचकों ने बेरोजगारी की दर के 6.1% हो जाने पर काफी शोर किया है। लेकिन इसमें वे रोजगार की उस बढ़ती हुई दर को देखना भूल गए, जो 94% के उच्चतम स्तर पर है। सर्वेक्षण के इस उजले पक्ष के साथ-साथ भारत के लिए अनेक चुनौतियों की भी चर्चा की जानी आवश्यक है।
- कृषि-कर्म में रत कार्यबल को उद्योगों और सेवा क्षेत्र में संलग्न करने के प्रयास की गति बहुत धीमी है। कृषि में रोजगार की लगातार गिरती दर 2017-18 में 44% पर आ गई है।
कृषि में संलग्न 44.1% कार्यबल सकल घरेलू उत्पाद में 15% का ही योगदान देता है। इसका अर्थ है कि इसमें रत प्रत्येक श्रमिक की उत्पादकता सेवा व उद्योग क्षेत्र के संयुक्त श्रमिक कार्यबल के एक-चैथाई से भी कम है। जबकि सेवा व उद्योग क्षेत्र में भी श्रमिकों का आउटपुट कोई बहुत अच्छा नहीं है।
- सेवा व उद्योग क्षेत्र में कार्य करने वाले अधिकांश श्रमिक छोटे-छोटे उद्यमों में लगे हुए है, जहाँ वेतन भी बहुत कम है। यदि निर्माण उद्योग को छोड़ दें, तो इन छोटे उद्यमों में श्रमिकों की संख्या 11.1 करोड़ के आसपास है। पूरे 13.1 करोड़ कार्यबल का यह 84.7% है। इनमें से 62% कार्यबल ऐसे कार्यों में लगा हुआ है, जो नियमित तौर पर श्रमिकों को काम पर नहीं लेते हैं।
कठोर सत्य यही है कि कृषि-कर्म, छोटे उद्यमों और ओन अकाउंट एंटरप्राइज में लगे कार्यबल को जब तक बड़े उद्यमों से नहीं जोड़ा जाता, तब तक समृद्धि और आर्थिक रूपांतरण स्वप्न ही बनकर रहेंगे।
- अगर कृषि श्रमिकों की स्थिति सुधारने का प्रयत्न किया भी जाए, बाजार सुधार के द्वारा उनकी आय में वृद्धि की कोशिश की जाए, तब भी प्रति श्रमिक निम्न आउटपुट की समस्या से कैसे निपटा जाएगा।
कृषि में उन्नत तकनीक, सिंचाई के बेहतर तरीकों और निवेश को बढ़ाने का प्रभाव भी अस्थायी रहता है। यह अधिक समय तक नहीं टिकता। मांग बढने की कम संभावना होने पर आउटपुट अधिक होने से कीमते गिरेंगी और आय वहीं की वहीं रहेगी। निर्यात की भी एक सीमा है। बागवानी और मत्स्य पालन में संभावनाएं है, परंतु यहाँ सीमित श्रमिकों की ही आवश्यकता होती है।
कृषि श्रमिकों को सेवा और उद्योग क्षेत्र में स्थानांतरित करना ही एकमात्र उपाय है। इससे एकाएक भूमि और प्रति श्रमिक उत्पादकता में वृद्धि हो सकेगी। तभी किसानों की आय बढ़ सकेगी।
इसके लिए हमें उद्योगों को सूक्ष्म से लघु, लघु से मध्यम और मध्यम से वृहत् तक ले जाने की आवश्यकता है। इसके लिए सोच में परिवर्तन लाना होगा। किसानों को उनकी भूमिका में बदलाव के लिए तैयार करना होगा। इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि इस पूरी प्रक्रिया को बदलने में हमें दर्द तो बहुत सहन करना है, लेकिन दूरगामी उद्देश्य की सिद्धि इसी में है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित अरविंद पन्गढिया के लेख पर आधारित। 11 जून, 2019