नगरीय विकास में राज्य सरकारों की भूमिका

Afeias
28 Mar 2017
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Date:28-03-17

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हमारे शहरों की स्थिति पिछले कुछ वर्षों की तुलना में और भी खराब हो चुकी है। भारतीय अर्थव्यवस्था के त्वरित विकास के लिए शहरों को निर्णायक भूमिका निभानी होगी। शहरों के विकास और अनियोजित शहरीकरण को पटरी पर लाने के लिए रोज ही किसी न किसी तरह की योजनाएं बनाई जाती हैं। शहरों के विकास की योजनाएं बनाने से पहले इससे संबंधित दो तथ्यों को समझना अत्यंत आवश्यक है।

  • शहरों की योजना और प्रबंधन का पूरा दारोमदार राज्य सरकारों पर होता है। जबकि सामान्यतः शहरों में बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं का जिम्मेदार केंद्र सरकार को माना जाता है। अब शहरों में संस्थागत सुधारों के उत्तरयदायत्वि का हस्तांतरण राज्य सरकारों को कर दिया जाना चाहिए।
  • दूसरे, हमारे शहरों के स्वरूप को बदलने के लिए समग्र प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। हमारे यहाँ स्वच्छ जल, कचरा निष्पादन, सार्वजनिक परिवहन आदि से जुड़ी योजनाओं और कार्यक्रमों की भरमार है। इनमें से हर योजना या कार्यक्रम के लिए एक अलग सरकारी विभाग है। लेकिन ये सभी विभाग अन्य सरकारी एजंसियों की तरह शिथिलता से काम करते हैं। शहरों से जुड़ी बहुत सी समस्याएं आपस में जुड़ी हुई हैं।

किसी समस्या का उचित समाधान तभी किया जा सकता है, जब उससे जुड़ी दूसरी समस्या का भी समाधान हो।अगर हम पहले एवं दूसरे तथ्य को लेकर चलें और शहरों के विकास में राज्यों के प्रयासों पर नज़र डालें, तो हम पाते हैं कि 2011-2014 के दौरान कुछ राज्यों में से महाराष्ट्र ने शहरों की स्थिति सुधारने में बाजी मार ली है।

  • महाराष्ट्र की नीति
    • भारत के अन्य शहरों की तुलना में महाराष्ट्र सरकार ने अपने वासियों को पीने का पर्याप्त पानी मुहैया कराया है। महाराष्ट्र सरकार ने सन् 2000 की शुरूआत में सुखतंकर समिति गठित की थी। इस समिति ने कस्बों और नगरों में जल ऑडिट की वकालत करते हुए जल आपूर्ति और उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग में लाए गए बिल के बीच के अंतर का 75% स्वयं भरने की बात कही।
    • महाराष्ट्र में नागपुर ने सुखतंकर समिति की सलाह को अपनाया और पाया कि उसका 52% जल बर्बाद हो रहा है। यह बर्बादी जल के मूल स्त्रोत से लेकर जल वितरण के बीच में हो रही थी। नागपुर नगर निगम ने उन सभी दरारों को बंद किया और पानी बचाया। राज्य सरकार के जल ऑडिट को बढ़ावा देने और उसका आंशिक खर्च वहन करने से ही यह संभव हो सका।
    • सन् 2005 में केंद्र सरकार के नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन के साथ ही नहरों की जगह पाइपलाइन बिछाई गई, जिससे जल-चोरी के मामले खत्म हुए।
    • नागपुर में 24 घंटे जल-आपूर्ति को सफल बनाने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की गई। इस पार्टनरशिप में राज्य सरकार ने पूरा सहयोग दिया।
    • महाराष्ट्र सरकार ने जल उपभोक्ताओं का वर्गीकरण करके उसके अनुसार पानी के बिल का निर्धारण किया।
    • सन् 2010 में महाराष्ट्र सरकार ने “सुजल निर्मल अभियान” की शुरूआत की। इस योजना में लगभग 247 शहरों में जल एवं स्वच्छता के लिए युद्ध-स्तर पर काम किया गया। इस योजना में राज्य सरकार ने स्थानीय प्रशासन को सशर्त धनराशि दी। स्थानीय प्रशासन ने अलग-अलग सुनियोजित सोपानों में प्राथमिकता के आधार पर काम किया।इसी प्रकार गुजरात सरकार की नगर प्रबंधन योजनाओं ने भी उदाहरण प्रस्तुत किया है।

गुजरात नगर प्रबंधन एवं शहरी विकास अधिनियम को 1999 में संशोधित किया गया। यहाँ पर तेजी से विकसित होते सूरत और अहमदाबाद जैसे नगरों के क्षेत्रों में विस्तार के लिए भूमि पुनर्गठन बुनियादी ढ़़ांचों के लिए धनराशि एवं प्रबंधन को समग्र रूप से नियोजित किया गया। राज्य में वैधानिक सुधारों के जरिए नगर प्रबंधन में बदलाव करके इन दोनों नगरों में बाईपास बनाए गए।आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सरकारों ने भी अपने राज्यों में भूमि सुधार कानून में ऐसे फेरबदल किए हैं, जो अन्य राज्यों में नगरों के विकास में रोड़ा बने हुए हैं।जब तक अन्य राज्य “सुजल निर्मल” जैसे अभियान और शहरों के स्थानीय प्रशासन को पर्याप्त धनराशि और क्षमता मुहैया नहीं कराएंगे तब तक शहरों का विकास नहीं हो पाएगा। केंद्र सरकार ने नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन के जरिए संपूर्ण भारत के नगरों में ई-गवर्नेंस जैसा हाईटेक प्रशासन देने का प्रयास किया है। लेकिन जब तक राज्य सरकारें सक्रिय नहीं होगीं, तब तक नगरों का विकास नहीं किया जा सकता।

इंडियन एक्सप्रेस में  प्रकाशित  ईशर  जज  अहलूवालिया  के  लेख  पर  आधारित।

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