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नगरीय प्रशासन का सशक्तीकरण हो
Date:26-06-18 To Download Click Here.
पच्चीस वर्ष पूर्व संविधान में 74वां संशोधन किया गया था। यह संशोधन नगर-निगमों से संबंधित था। इसके अंतर्गत नगरों के स्थानीय प्रशासन को प्रभावशाली ढंग से काम करने के लिए एक समान रूपरेखा और शासनादेश दिया गया था। आज जब केन्द्र सरकार के स्मार्ट सिटी मिशन के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं; नगर-निगमों के प्रशासन की वास्तविक स्थिति जांचने का सर्वोत्तम समय है। वर्तमान में नगरपालिका और नगर निगम की स्थिति ऐसी बिल्कुल भी नहीं है कि उन्हें संघीय शासन प्रणाली का तीसरा स्तर माना जा सके। 74वें संशोधन के लागू होने के 25 वर्षों बाद भी आज प्रशासन के दो ही स्तर प्रभावशाली दिखाई देते हैं-केन्द्र और राज्य। नगरीय स्थानीय प्रशासन के शक्तिहीन और संस्था के रूप में उसे राजनीति से दूर करने के कई कारण नजर आते हैं।
- नगर स्तर पर चुने हुए प्रतिनिधियों को राज्य के अधीन करके, उन्हें शक्तिहीन कर दिया जाता है। कहने को तो मेयर नगर का अध्यक्ष होता है, परन्तु वास्तविक शक्ति राज्य द्वारा नियुक्त कमिश्नर के पास होती है।
- समय-समय पर राज्य सरकारें कुछ ऐसी एजेंसियों को स्थानीय स्तर पर काम करने के लिए नियुक्त कर देती हैं, जो नगरीय प्रशासनिक संस्थाओं की भूमिका को और भी सीमित कर देती हैं। इन्हें नगरीय विकास एजेंसी का रूप दे दिया जाता है। ये एजेंसियां सड़क निर्माण, जल-बिजली आपूर्ति तथा परिवहन आदि का कार्य देखती हैं, और इनकी जवाबदेही सीधे राज्य सरकार के प्रति होती है। यहाँ तक कि नगर-योजना एवं उपयोग विनियमन का कार्य भी ऐसी ही एजेंसियां करती हैं।
- केन्द्र सरकार, स्मार्ट सिटी मिशन में स्पेशल पर्पज व्हीकल के माध्यम से स्थानीय प्रशासन के निर्णय लेने के अधिकार भी स्पेशल पर्पज व्हीकल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अधीन रखना चाहती हैं।
- स्थानीय करों की उगाही या एक सीमा से अधिक की नागरिक परियोजनाओं के लिए नगर-प्रशासन को राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है।
- ऊपर से 12वीं अनुसूची में राज्य सरकार द्वारा स्थानीय प्रशासन को जो सहायता प्रदान करने वाले क्षेत्र दिए गए हैं, उनमें परिवहन-आवास जैसी आवश्यक नागरिक सुविधाएं नहीं दी गई हैं।
- नगरों में ऐसे औद्योगिक क्षेत्र बनाने का भी प्रावधान है, जहाँ स्थानीय प्रशासन का कोई अधिकार ही नहीं होता।
नगरों को अपने नागरिकों की सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करते देखकर लगता है कि पंचायतों की तर्ज पर (ग्राम, ताल्लुक एवं जिला) नगरों के लिए तीन स्तरीय प्रशासन व्यवस्था का गठन किया जाना चाहिए। पिछले 25 वर्षों में हमारे कई नगरों की जनसंख्या एक करोड़ पार कर चुकी है। ऐसे में म्यूनिसिपल की एकमात्र संस्था प्रशासन चलाने में सक्षम सिद्ध नहीं हो रही। भविष्य में नगरीय प्रशासन चाहे जो भी आकार ले, एक बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उसकी राजनैतिक शक्ति कम न हो।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित मैथ्यू इडिकुला के लेख पर आधारित। 14 जून, 2018