दिल्ली सरकार का विवाद
Date:18-07-18 To Download Click Here.
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें मंत्रिपरिषद् की सलाह और सहायता से ही काम करना होगा। ऐसा करके उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश में प्रतिनिधि सरकार के विशेष दर्जे वाली स्थिति को फिर से बहाल कर दिया है। न्यायालय के इस आदेश ने 2016 के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को पलटते हुए दो तथ्यों को सिद्ध कर दिया है।
(1) जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों के हाथ में ही शासन की शक्ति निहित है। (2) चूंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया गया है, इसलिए उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता से ही काम करना होगा।
केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली को एक विशेष दर्जा दिया गया है। राज्य के नाते इसकी चुनी हुई सरकार को राज्य व समवर्ती सूची के अंतर्गत कुछ क्षेत्रों; जैसे भूमि, पुलिस आदि को छोड़कर अन्य पर कानून बनाने का भी अधिकार है। बहुत समय से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की जा रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से इसका केंद्र की बीजेपी सरकार से लगातार संघर्ष चल रहा है। अनुच्छेद 239 एए में उपराज्यपाल को दिए अधिकारों के कारण अक्सर विवाद की स्थिति बनती रही है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय से उपराज्यपाल को एक तरह से घेर लिया है। अभी तक यही माना जा रहा था कि उपराज्यपाल किसी भी मामले को राष्ट्रपति के परामर्श के लिए भेज सकते हैं। परंतु न्यायालय ने इसे सीमित करते हुए कहा है कि ‘किसी मामले‘ का अर्थ ‘हर एक मामले‘ से नहीं लगाया जाना चाहिए। केंद्र को अपने मामलों के बीच में लाने से पहले उपराज्यपाल को चाहिए कि वह दिल्ली सरकार से बातचीत करे। ‘किसी मामले‘ को भी न्यायाधीश चंद्रचूड ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह वित्त या देश की राजधानी को प्रभावित करने वाली कोई नीति जैसा महत्वपूर्ण मामला होना चाहिए।
यदि समग्र रूप से देखें, तो न्यायालय का आदेश संवैधानिक नैतिकता की मर्यादा को बनाए रखने की वकालत करता है। इसने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को खारिज करने के साथ-साथ दिल्ली की पुलिस तथा भूमि और सार्वजनिक व्यवस्था पर केंद्र का ही प्रभुत्व बनाए रखा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एक अनिर्वाचित प्रशासक को निर्वाचित सरकार से किसी भी प्रकार ऊपर नहीं माना जा सकता।
समाचार पत्रों के संपादकीय पर आधारित।