डिजिटल भारत की वास्तविकता
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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष डिजीटल इंडिया और स्टार्ट अप इंडिया की शुरूआत की थी, जिसे काफी सराहा गया था। आज के संदर्भ में अगर देखा जाए तो इन अभियानों की सफलता में संशय होने लगा है।
कारण-
- फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और ओला जैसी देशी कंपनियों को अमेजोन और उबर जैसी विदेशी कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। विदेशी कंपनियों को अमेरिका से पर्याप्त मात्रा में वित्तीय एवं तकनीकी सहायता मिलती रहती है, जिनकी मदद से ये देशी कंपनियों को मात दे रही हैं। हाल ही में अमेजोन ने मुम्बई में अमेजोन वेब सर्विस शुरू की है, जिसमें कई विदेशी कंपनियां भारत में अपने डेटा सुरक्षित रख सकेंगी। इसी की एक शाखा बेंगलुरू में खोली जा रही है। इस प्रकार विदेशी कंपनियां दिनोंदिन अपनी बढ़ोत्तरी कर रही हैं।
- गूगल और फेसबुक जैसी अमेरिकन कंपनी डिजीटल विज्ञापनों पर कब्जा जमाए हुए हैं। ये कंपनियां डिजीटल विज्ञापन का 75 प्रतिशत राजस्व खींच ले जाती हैं।
- सरकार बहुत से क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था का उदारीकरण करती जा रही है। परन्तु नवजात डिजीटल को अलग तरह से संभालने की जरूरत है। अन्यथा भारत बस एक डिजीटल उपनिवेश बनकर रह जाएगा, जहाँ अमेज़ोन और अलीबाबा जैसी कंपनियां अपना प्रभुत्व जमाए रखेंगी।
समाधान
अगर हम चीन की डिजीटल नीति पर नजर डालें, तो हमें काफी कुछ सीखने को मिल सकता है। चीन ने अपने डिजीटल क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को प्रवेश देने से पहले स्थानीय डिजीटल व्यवसाय को पनपने के लिए पर्याप्त समय दिया। आज उसके सकल घरेलू उत्पाद का 21 प्रतिशत डिजीटल क्षेत्र की देन है। यह प्रतिशत लगभग दस वर्षों तक बना रहेगा, क्योंकि उसकी डिजीटल अर्थव्यवस्था देशी है और उसमें ग्रामीण क्षेत्रों के भी लाखों तकनीकी विशेषज्ञ कार्यरत हैं। चीन में गूगल और फेसबुक की तर्ज पर स्वदेशी बायदू ¼Baidu½ और टेन्सेन्ट ¼Tencent½ जैसी कई बड़ी इंटरनेट कंपनियां काम करती है। इनमें वहाँ के कई हजार लोग कार्यरत हैं।
जबकि गूगल और फेसबुक भारत में माकेटिंग क्षेत्र के ऐसे कुछ सौ लोगों को नौकरी देती हैं, जो कैलीफोर्निया में उनके हजारों इंजीनियर द्वारा बनाए उत्पादों को यहाँ बेच सकें।
भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है। कई भारतीय इंजीनियर अमेरिका में डिजीटल क्षेत्र में काम करके नई तकनीकों का विकास कर रहे हैं। अगर भारत स्वदशी डिजीटल अर्थव्यवस्था और तकनीक के विकास पर अपनी नीतियों में रफ्तार लाए, तब ही डिजीटल भारत की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी।
‘‘टाइम्स आॅफ इंडिया’’ के संपादकीय पर आधारित