खेलों के माध्यम से लैंगिक समानता
Date:05-10-18 To Download Click Here.
यदि खेलों के क्षेत्र में देखें, तो हम पाते हैं कि 2014 से नई सरकार के गठन और ओलंपिक रजक पदक विजेता को खेलमंत्री बनाए जाने के बाद से भारत में खेलों के स्तर में कुछ सुधार हुआ है। परन्तु अन्य क्षेत्रों की तरह ही यहाँ भी महिलाओं या लड़कियों की तुलना में कमतर और कमजोर समझकर उन्हें अलग तरह से रखा जाता है।
कुछ प्राथमिक विद्यालयों का सर्वेक्षण करने के बाद यह पाया गया कि स्कूलों के खेल के पीरियड में भी लड़कियाँ घूमती या बातें करती रहती हैं। जबकि लड़के खेलों का पूरा आनंद लेते हैं। यही कारण है कि एड्यू स्पोर्टस् (2017-18) के आठवें स्वास्थ्य और फिटनेस सर्वेक्षण में लड़कियों की तुलना में लड़कों का बॉड़ी मास इंडेक्स ज्यादा अच्छा पाया गया। इस सर्वेक्षण में लड़कियों की शारीरिक शक्ति और आंतरिक बल लड़कों की तुलना में कम पाई गई।
वैश्विक खेल प्रतिस्पर्धाओं में भारत के खराब प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने स्कूलों में खेल को अहमियत देने की नीति अपनाई।
- समग्र शिक्षा योजना के अंतर्गत देश के 11.5 लाख सरकारी स्कूलों में खेल उपकरण मुहैया कराने की मुहिम चलाई गई।
- इसी वर्ष जुलाई में सरकार ने अगले वर्ष से सीबीएसई पाठ्यक्रम में खेल को अनिवार्य करने का निर्णय लिया है।
- उच्चतम न्यायालय में खेलों को मौलिक अधिकार का दर्जा दिए जाने संबंधी जनहित याचिका दाखिल की गई है।
यही वह समय है, जब हम खेलों के माध्यम से अपने समाज को समावेशी बना सकते हैं। अगर न्यायपालिका में जनहित याचिका के पक्ष में निर्णय दिया जाता है, तो यह खेलों में व्याप्त असमानता दूर करने की दिशा में एक प्रेरणदायक कदम होगा।
खेलों के माध्यम से वंचित वर्ग के बच्चों, खासतौर पर लड़कियों को आगे बढ़ाने में सफलता मिल सकेगी। खेलों को न्यायिक संरक्षण मिलने पर (1) बच्चे स्कूल के साथ-साथ अपने आसपास की खाली जगहों को खेलने के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे। (2) खेलों को लड़कियों के लिए भी एक सामान्य प्रक्रिया माना जाने लगेगा। उनका दौड़ना, चिल्लाना, गिरना-पड़ना, मिट्टी में लोट जाना आदि असामान्य की दृष्टि से नहीं देखा जाएगा। (3) लड़कियों की आत्म-छवि के निर्माण में दृढ़ता आएगी। उनके अंदर कूटनीतिक सोच, प्रतिस्पर्धा की भावना और नेतृत्व क्षमता का विकास होगा।
प्राथमिक स्तर पर ऐसा होने के बाद, इनमें से ही प्रतिभाएं ऊभरकर सामने आएंगी। उन्हें सामाजिक सहयोग और संरक्षण प्राप्त हो सकेगा।
कुछ संस्थाएं, जैसे नाज़ फाऊडेशन, खेलों के माध्यम से महिला अधिकारों की रक्षा के लिए जीवन-कौशल का विकास कर रही हैं। इसी प्रकार ब्रिटिश कांऊसिल की चेंजिंग मूव्स चेजिंग मांइन्डस् योजना, खेलों के माध्यम से लैंगिक भेदभाव को दूर करने का प्रयास कर रही है।
खेल-शिक्षा को एक मौलिक अधिकार का दर्जा देकर, लैंगिक समानता जैसे अवरोधों को दूर किया जा सकता है। विकास की राह में यह पहली सीढ़ी की तरह होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अर्पण तुलस्यान के लेख पर आधारित।