केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की भूमिका
To Download Click Here
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो हमारे देश की एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था है। जाहिर है कि इसके प्रमुख की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। सी.बी.आई. के प्रमुख को प्रधानमंत्री से लगातार संपर्क में रहना पड़ता है। संस्था की गतिविधियों और कार्यों से प्रधानमंत्री को निरंतर अवगत कराना पड़ता है। साथ ही जांच-पड़ताल के कामों में अपनी स्वतंत्रता को भी कायम रखना पड़ता है। इस प्रकार सी.बी.आई. और इसके प्रमुख का काम अत्यंत उत्तरदायित्व का है। यह संस्था ऐसी संवेदनशील स्थिति में काम कर रही होती है, जहाँ इसे सरकारी पक्ष और निजी पक्ष के बीच संतुलन बनाकर चलना पड़ता है
वर्तमान में और पहले भी बहुत से प्रकरणों में ब्यूरो की भूमिका पर ऊंगली उठायी गई है। इसका कारण यही है कि इसके अधिकारियों के पास अपार शक्ति होती है। ये अधिकारी कई बार तो मामले की तह तक जाने के लिए और कई बार अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए कठोर कदम उठाते हैं। बहरहाल ब्यूरो की कार्यप्रणाली में अन्य बहुत-सी कमियां हैं, जिनके रहते हुए इस पर आम जनता का विश्वास कभी नहीं जम सकता।केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो पर राजनैतिक दबाव बना रहता है। हाँलाकि ब्यूरो के पास आने वाले मामलों में से मात्र 10 प्रतिशत पर ही राजनैतिक दबाव पड़ता है। लेकिन इस जैसी शक्तिशाली विश्वसनीय और जाँच की शीर्ष संस्था पर किसी भी सीमा तक राजनीति की मार सहन नहीं की जानी चाहिए। इसी दबाव के कारण ब्यूरो की विश्वसनीयता पर बट्टा लग चुका है।
राजनैतिक दबाव और उनके खुलासे के बाद सी.बी.आई. पर जनता द्वारा लगाए गये आरोपों से ब्यूरो को मुक्त रखा जाना चाहिए। निष्कर्ष यही है कि जाँच की ऐसी शीर्ष संस्था के लिए किसी प्रकार की अड़चनें खड़ी नहीं होनी चाहिए।केन्द्रीय अन्वेषण के पास जाने वाले किसी मामले का निपटारा होने में समय बहुत लगता है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग के पूर्व प्रमुख ने तो इसे ‘ब्लैक होल’ तक की संज्ञा दे डाली, जहाँ एक बार कुछ भी जाने के बाद वह वापस निकलकर नहीं आता। ब्यूरो निदेशक के ऊपर इस बात की बहुत जिम्मेदारी होती है कि वह मामलों के निपटारे में गति लाए। शायद यह कहना बहुत आसान है परन्तु वास्तव में करना उतना आसान नहीं। फिर भी कुछ तरीके निकाले जा सकते हैं, जैसे –
- ब्यूरो के पास मामलों की संख्या सीमित हो।
- अगर इसे सीमित नहीं किया जा सकता, तो ब्यूरो में काम करने वालों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो में काम के अवसर बढ़ाने के साथ ही युवाओं में इस संस्था के प्रति आकर्षण बढ़ाने का प्रयास भी करना होगा। इसके लिए ब्यूरो को शिक्षण संस्थाओं में समय-समय पर कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए। इसकी भर्ती प्रक्रिया में भी बदलाव लाने चाहिए। यू.पी.एस.सी. के माध्यम से ब्यूरो में सीधी भर्ती के लिए परीक्षाएं आयोजित की जा सकती हैं।
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की कार्यप्रणाली में राज्य सरकारों पर निर्भरता भी एक बड़ी अड़चन है। होता यह है कि ब्यूरो के पास आया कोई भी मामला अगर किसी राज्य से जुड़ा है, तो उस राज्य की अनुमति लेनी आवश्यक होती है। सी.बी.आई. कोड ऑफ क्रिमीनल प्रोसीजर के अंतर्गत कार्य करती है। यह पुलिस विभाग का ही अंग है और पुलिस राज्यों के अंतर्गत आती है। कई राज्य सरकारें ब्यूरो को अनुमति देने में आना-कानी करती हैं या अनुमति नहीं भी देतीं। इससे ब्यूरो के काम पर दो तरह से प्रभाव पड़ता है। एक तो जांच में होती है और दूसरे कई मामलों में निष्पक्ष जाँच नहीं हो पाती।
ब्यूरो के कई पूर्व निदेशकों ने कस्टम एक्ट और इन्कम टैक्स एक्ट की तर्ज पर सीबीआई एक्ट बनाने की सिफारिश की है। इससे ब्यूरो के अधिकारियों की राज्य सरकारों पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। ऐसे प्रस्ताव या सिफारिशें सचिवालय में धूल ही खा रही हैं। दरअसल, इस एक्ट को लाने में सरकार को शायद यह डर है कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो कहीं अधिक शक्तिशाली और स्वायत्त बनकर उसके लिए ही एक खतरा न बन जाए।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित आर.के.राघवन के लेख पर आधारित।