कृषि में सुगमता लाने हेतु प्रयास

Afeias
08 Jul 2020
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Date:08-07-20

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3 जून से हमारी यूनियन केबिनेट ने एक अध्यादेश जारी करके किसानों को अपनी उपज एपीएमसी यानी एग्रीकल्चिर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी से बाहर भी बेच सकने की छूट दे दी है। इससे अनेक प्रकार के नियमनों में बंधा कृषि बाजार मुक्त हो गया है। देश के विभिन्न क्षेत्रों के किसानों को अतिरिक्ति उत्पाद को बेहतर दामों पर बेचने की स्वतंत्रता मिल सकेगी। विकल्प खुलने से विपणन पर होने वाले व्याय में भी फर्क आएगा। अब नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई.एन ए एम) जैसे मंच का सही उपयोग हो सकेगा।

दूसरा अध्यादेश 5 जून को प्रवर्तित किया गया , जिसमें किसानों को कांट्रेक्ट या अनुबंध कृषि के लिए एक ऐसा ढांचा दिया जाएगा , जो इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करेगा। द फार्मर्स (एमपॉवरमेन्ट एण्ड प्रोटेक्शन) एग्रीमेन्ट ऑन प्राइस एश्योरेंस एण्ड फार्म सर्विसेज़ नामक यह कानून किसानों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के बीच एक कड़ी का काम करेगा। यह किसानों को बाजार की मांग के अनुसार फसल का चुनाव करने और उसकी गुणवत्ता बनाए रखने से संबंधित दिशानिर्देश देगा। संभवत: इस कानून के चलते बड़े-बड़े खुदरा विक्रेताओं का कृषि में निवेश की ओर रूझान बढ़े। इससे किसानों और बड़ी कंपनियों , दोनों को ही उत्पादकता बढ़ाने से सरोकार रहेगा। इस प्रोत्साहन से क्षमता बढ़ेगी और मध्यस्थों की भूमिका नगण्य रह जाएगी।

किसानों को विपणन में होने वाले खतरों से मुक्ति मिलेगी। एक समझौता अवधि में उनकी (विशेष रूप से छोटे किसानों) आय बढ़ेगी। इस पूरी प्रक्रिया में फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफ पी ओ) महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। इस कानून की मदद से प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों के निर्यात का द्वारा खुल सकेगा।

कृषि का विषय समवर्ती सूची में आता है। अत: केन्द्र सरकार के इन अध्यादेशों को राज्यों व्दारा स्वीकृत किए जाने पर ही किसानों को असल लाभ मिल सकता है। राज्य सरकारें अक्सर किसी एक सामग्री पर प्रतिबंध लगा देती हैं , जो पड़ोसी राज्यों में खुलेआम बिकती हैं। इससे किसानों को हानि होती है। अत: राज्य सरकारें इनपुट्स पर मुक्त‍ व्यापार की नीति अपनाते हुए मूल्य नियंत्रण लागू न करें। एग्रो रसायनों और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के मूल्य नियंत्रित करने से इनके नए उत्पादों के शोधन व अनुसंधान में कंपनियां निवेश करने से हिचकती हैं। इससे हमारे किसानों को नई व उन्नत तकनीकों से वं‍चित होना पड़ता है।

इन अध्यादेशों के बीच मंडी की पुरानी परंपरा यथावत चलती रहेगी। नए वैकल्पिक मॉडल के पूर्ण रूप से तैयार होने तक ए पी एम सी और नए निजी विक्रेताओं , दोनों को ही महत्व दिया जाता रहेगा।

कृषि के क्षेत्र में किए जा रहे इन महत्वपूर्ण सुधारों की कड़ी में कृषि परिषद्  का गठन बाकी रह गया है। इसे जी एस टी परिषद् की तरह ही राज्य के प्रतिनिधियों के सहयोग से चलाया जाना चाहिए। उम्मीद की जा सकती है कि ऐसी संस्थाएं , कृषि क्षेत्र में बेहतर समन्वय और एकरूपता ला सकेंगी।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अजय एस . श्रीराम के लेख पर आधारित। 23 जून , 2020