ओजोन का नया खतरा

Afeias
23 Mar 2020
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Date:23-03-20

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पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन गैस के क्षय की समस्या पुरानी है। ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिन्ता को लेकर संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में 1987 को एक समझौता भी हुआ था, जिसे ‘मांट्रियल प्रोटोकॉल’ के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में तैंतीस देशों ने ओजोन के क्षय के लिए दोषी क्लोरो फ्लोरो कार्बन के उत्पादन और उपयोग को सीमित करने का संकल्प लिया था। भारत भी इस सम्मेलन का अंग था।

अब ओजोन से संबंधित दूसरा खतरा उत्पन्न हो रहा है। जमीनी स्तर पर ओजोन की मात्रा बढ़ती जा रही है, जो मानवों और प्रकृति के लिए कई प्रकार से हानिकारक है।

कारण

वायुमंडल में ओजोन गैस का प्रतिशत बहुत कम होता है। इसकी कुछ मात्रा वायुमंडल की निचली परत यानी क्षोभमंडल में पाई जाती है। यह समताप मंडल में पृथ्वी को पराबैंगनी विकिरण से बचाती है।

ओजोन तत्व ऑक्सीजन के तीन अणुओं से बना है। जीवन के लिए ऑक्सीजन के दो अणु ही जरूरी होते हैं। इसके तीन अणु प्रकृति और मानव के लिए घातक हो जाते हैं।

बढ़ते मोटर वाहन, बिजली संयंत्र, रिफायनरी और अन्य स्रोतों से हुआ प्रदूषण सूर्य के प्रकाश के साथ मिलकर ओजोन गैस बनाता है, और वह जमीन पर जमा हो जाती है। औद्योगिक प्रदूषण से पृथ्वी के सबसे निकट क्षोभमंडल में ओजोन की मात्रा बढ़ती जा रही है। जबकि समताप मंडल में इसकी जरूरत ज्यादा है, और वहाँ मात्रा घटती जा रही है।

प्रभाव

  • सर्दियों के दौरान बनने वाले स्मॉग का प्रमुख कारण ओजोन है।
  • जब हवा में घुली ओजोन मनुष्य के फेफड़ों में जाती है, तो यह फेफड़ों के छोटे-छोटे छिद्रों को बंद करने की कोशिश करती है। ऐसी अवस्था में खांसी और सीने में दर्द होने लगता है। कई बार फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं, जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।
  • सुरक्षा कवच कही जाने वाली ओजोन के नष्ट होने से पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुँच रही हैं। इससे त्वचा रोग बढ़ रहे हैं।
  • जमीनी स्तर पर ओजोन गैस गेहूं, चावल, सोयाबीन और कपास की फसलों को नुकसान पहुँचा रही है।
  • पेड़-पत्तियों पर भी इसका विपरीत प्रभाव देखा जा रहा है। वे सूखने लगे हैं।

जिम्मेदार कौन

चीन के कुछ उद्योगों से भारी मात्रा में प्रतिबंधित रासायनिक गैसें निकलती हैं। इस श्रेणी के रसायन सीएफसी-11 के उत्सर्जन में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

निष्कर्ष

शोधकर्ताओं का मानना है कि जमीनी स्तर पर ओजोन का सबसे ज्यादा प्रभाव चीन और भारत जैसे देशों पर पड़ेगा।

ओजोन गैस के क्षय की समस्या से जुड़े कई कानून मौजूद हैं। परन्तु धरती पर बढ़ने वाले ओजोन की मात्रा को रोकने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है।

ओजोन का बढ़ना वैज्ञानिकों के लिए चुनौती और शोध का विषय बना हुआ है। भारत में भी राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक गेहूं की उन प्रजातियों का पता लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं, जो ओजोन के दुष्प्रभाव के बावजूद अच्छी पैदावार दे सकती है।

समताप मंडल की ओजोन परत 99 प्रतिशत तक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। इसके संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए 16 सितंबर को “ओाजन दिवस“ भी मनाया जाता है। लेकिन वास्तविक स्तर पर ईमानदारी से प्रयास नहीं किए जो रहे हैं। विभिन्न राष्ट्रों ने अपने आर्थिक विकास को प्राथमिकता देते हुए पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया है। इस प्रवृत्ति को दूर करना होगा, और वैश्विक कल्याण के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ना होगा।

समाचार पत्र व अन्य स्रोतों पर आधारित।

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