एशिया रीबैलेंसिंग पॉलिसी

Afeias
05 Jul 2016
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CC 5-July-16Date: 05-07-16

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पिछली सदी में पचास से अस्सी के दशक के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध का दौर चला। लेकिन अब ऐसा लगता है कि 21वीं सदी में अमेरिका और इसके साथी देशों तथा चीन के बीच शीतयुद्ध का अगला दौर शुरू होने वाला है। इसके लिए दोनों पक्षों की सेनाओं को अधिक से अधिक आधुनिक बनाने की होड़ देखी जा रही है।

चीन को रोकने के लिए अमेरिका ने एशिया रीबैलेंसिंग की रणनीति घोषित की है, जिसमें सीधे तौर पर भागीदार बनने से भारत कतराता रहा है। लेकिन जून 2016 में ओबामा-मोदी वार्ता के बाद भारत को अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझीदार बनाने की बात जिन शब्दों में कही गई है, उससे साफ है कि आने वाले वर्षों में भारत-अमेरिका के रक्षा रिश्ते न केवल सैनिक साजो-सामान हासिल करने के लिए ही गहरे होंगे, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी दोनों देश चीन विरोधी अभियान में एक साथ होंगे। साफ है कि एशिया रीबैलेंसिग को भारत का नैतिक समर्थन मिल रहा है।

इस नीति के तहत अमेरिका दुनिया में अपने आधे से अधिक नौसैनिक संसाधन इस क्षेत्र में स्थानातंरित कर रहा है, ताकि चीन की समुद्री चुनौतियों से निपटा जा सके। वह भारत को नीवनतम सैन्य संयंत्र और उपकरण इसीलिए दे रहा है कि चीन के विरूद्ध एशिया में एक ताकत के रूप में भारत उभर सके। इससे भारत नाटो जैसे किसी सामरिक गठबंधन में बंध गया है, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन अमेरिकी प्रशासनिक क्षेत्र में भारत को नॉन-नाटो पार्टनर का दर्जा देने की बात से इतना तो साफ हो गया है कि अमेरिका भारत को अपने खेमे में शामिल करने को आतुर है। जिस तरह न्यूक्लियर सप्लायर्स गु्रप (एनएसजी) की सदस्यता के लिए चीन ने भारत का विरोध किया है, वह भारत और अमेरिका, दोनों को नागवार गुजरा है। इसलिए दोनों देश अब चीन द्वारा पैदा सामरिक और रणनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए साझी रणनीति पर काम कर रहे हैं।

दक्षिण चीन सागर में चीन के इरादों से यदि अभी ही नहीं निपटा गया, तो आने वाले वर्षों में विश्व और भारतीय अर्थव्यवस्था को चीन की कृपा पर निर्भर रहना पड़ेगा। यह समुद्री क्षेत्र काफी व्यस्त व्यापारिक मार्ग है, जहां से एशिया-प्रशांत देशों के बीच भारी व्यापारिक आदान-प्रदान होता है। भारत का आधे से अधिक समुद्री व्यापार इस मार्ग से होता है, जिसकी चैकसी के लिए यह जरूरी है कि यह रास्ता हमेश खुला रहे और इस पर किसी का आधिपत्य न रहे, ताकि इससे होकर भारत आने-जाने वाले व्यापारिक जहाजों को बेरोक-टोक आवाजाही का मौका मिले।