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एक विवेकपूर्ण संतुलन
Date:30-12-19 To Download Click Here.
देश के संविधान में सर्वोच्च न्यायालय को न्याय की सर्वोच्च शक्ति माना गया है। एक सर्वोच्च न्यायाधीश के साथ अद्वितीय न्यायाधीशों से लैस यह संस्था, यतो धर्मस्ततोः जयः यानि “धर्म में ही जय” का लक्ष्य रखती है। यदा-कदा इसके निर्णयों पर भी ऊंगली उठाई जाती है। परन्तु इसकी गतिविधियों को देखते हुए यह कदापि नहीं कहा जा सकता है कि यह एक निष्क्रिय संस्था है।
हाल ही के अपने कुछ निर्णयों से सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह एक सतर्क निगरानीकर्ता की भूमिका को बखूबी निभा रहा है।
- सबसे पहला मामला सबरीमाला मंदिर का लिया जा सकता है। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करते हुए समानता के आधार और भेदभाव के विरूद्ध महिलाओं के मंदिर प्रवेश को सही ठहराया।
महिलाओं के प्रवेश को वर्जित करने के लिए अनेक दलों ने अनुच्छेद 25 का हवाला दिया था, जो धर्म के नियमों को मानने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। दरअसल, ऐसे दल, अनुच्छेद 14 और 15 को अनदेखा करते हैं, जिसमें लिंग के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय के उचित निर्णय का दूसरा उदाहरण राफेल सौदे में कुछ भी गलत न पाए जाने के अपने निर्णय पर दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका को खारिज करना था।
उच्चतम न्यायालय का एक और फैसला, जो सुर्खियों में है, वह कर्नाटक स्पीकर के आदेशों को खारिज करने का है। इसमें स्पीकर ने दल बदलने वाले 17 विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था। न्यायालय ने स्पीकर के आदेश को रद्द करते हुए अयोग्य उम्मीदवारों को 2023 तक चुनाव लड़ने के लिए सुरक्षित कर दिया।
न्यायालय ने फैसला दिया कि त्यागपत्र से, पूर्व अधिनियम के प्रभाव को दूर नहीं किया जा सकता। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने दलबदल के आधार पर किसी उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने के मामलों में अध्यक्ष की भूमिका और कार्य के बारे में शिक्षाप्रद टिप्पणियां कीं। न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर कोई सदस्य अपनी इच्छा से इस्तीफा देना चाहता है, तो स्पीकर उसे रोक नहीं सकता।
सामान्यतः तो उच्चतम न्यायालय का कोई भी निर्णय अपने आप में ही सर्वोच्च और विवेकपूर्ण होता है। इसके बाद किसी भी विवादास्पद मामले पर विराम लग जाना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्यवश भारत में ऐसा नहीं है। न्यायालय के निर्णय के बाद भी ऐसे मामले टीवी चैनलों और सार्वजनिक सभाओं में तर्क-वितर्क का मुद्दा बने रहते हैं। कुल-मिलाकर उच्चतम न्यायालय अपना काम बखूबी कर रहा है। अपने विवेकपूर्ण निर्णयों से वह एक सतर्क संस्था की भूमिका निभा रहा है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सोली सोराबजी के लेख पर आधारित। 3 दिसम्बर, 2019