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उच्च्तम न्यायालय में सामंजस्य की कमी
Date:04-05-18 To Download Click Here.
जेरेमी बैंथम, 18वीं शताब्दी के न्याय और राजनीतिक सुधारक थे। वे ‘अधिनियमित कानून’ के प्रबल समर्थक और ‘न्यायाधीश द्वारा बनाए गए कानून’ के पक्के विरोधी थे। उन्होंने अपने देश के उच्चतम न्यायालय को ‘जज एण्ड कम्पनी’ जैसा नाम दे रखा था। मशहूर बैरिस्टर डेविड पैनिक क्यू सी ने न्यायाधीशों पर अपनी पुस्तक में लिखा है : ‘‘जिस प्रकार से जज एण्ड कम्पनी काम रही है, वह एक रोचक मुद्दा है, और यह धीरे-धीरे सार्वजनिक वाद-विवाद का मुद्दा बन जाएगा।’’
भारत में, पिछले कुछ महीनों में उच्चतम न्यायालय के काम का तरीका न केवल वाद-विवाद का मुद्दा बन गया है, वह सार्वजनिक विवाद के साथ-साथ चिन्ता का विषय भी बन गया है।
आस्ट्रेलिया के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश माइकल कर्बी ने वहाँ के न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच के वैमनस्य को ऊजागर किया है। यही हाल अमेरिकी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का रहा है। 1995 के एक प्रकाशन में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच के विवादों को विशद रूप में बताया गया था। 1995 की फिलीप कूपर की पुस्तक में भी लिखा है, ‘‘शत्रुता ने सामंजस्य पर विजय प्राप्त कर ली है।’’
2004 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश आर.सी.लाहोटी ने एक निर्णय लिखते हुए अमेरिकी न्यायाधीश हैरी एडवर्ड को उद्धरित किया था : ‘‘इतने वर्षों के न्यायिक जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात ‘सामंजस्य’ लगी। मेरा मतलब है कि हम न्यायाधीशों के बीच कुछ मूल मुद्दों पर असहमति हो सकती है, परन्तु हम सबका उद्देश्य घटनाओं को ठीक करना है।’’
‘‘सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण” का अर्थ है कि हम एक दूसरे के विचारों का सम्मान करें, एक दूसरे की सुनें, और जहाँ तक संभव हो, एक दूसरे से सहमत होने के क्षेत्र ढूंढें। अपनी असहमति के अवसर पर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम एक ही राह के पथिक हैं।’’
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित फली एस. नरीमन के लेख पर आधारित।