इज़रायल और फिलिस्तीन को दो राष्ट्र बनाने के समाधान पर पानी पड़ा
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- हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने वर्षों से चले आ रहे इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को किसी प्रकार का समर्थन देने से इंकार कर दिया है। गौरतलब है कि सन् 1993 के ऑस्लो समझौते में फिलिस्तीन को राष्ट्र का पूर्ण दर्जा दिए जाने की बात कही गई थी। पश्चिम एशिया में सदियों से चले आ रहे इस संघर्ष के संदर्भ में ऑस्लो समझौते को ही मूल आधार की तरह माना जाता रहा है। लगभग एक दशक से इस संघर्ष को सुलझाने में अमेरिका निष्पक्ष भूमिका निभाता आ रहा है। अनेक अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में इस संघर्ष को सुलझाने के कोई खास प्रयास नहीं किए गए थे। ओबामा सरकार के कार्यकाल में भी इसे सुलझाने के प्रयास विफल रहे।
- ऑस्लो समझौते से लेकर अब तक इज़रायल पश्चिमी भाग में अपना वर्चस्व लगातार बढ़ाता जा रहा है। ऐसा करके उसने दोनों देशों के बीच के समझौते को ताक पर रख दिया है। इज़रायल ने फिलिस्तीन की भूमि पर कब्जा बढ़ाते जाने की नीति अपना रखी है। दूसरे उसने फिलिस्तीनी जनता एवं सेना दोनों पर ही बल प्रयोग का एकाधिकार प्राप्त कर रखा है। ओबामा प्रशासन में उसने गाज़ा पर तीन बार हमला करके हजारों फिलिस्तीनियों को मार दिया। ऐसी स्थितियों में फिलिस्तीन राष्ट्र का स्वतंत्र अस्तित्व कैसे स्थापित हो पाएगा ?
- अगर इज़रायल उसे राष्ट्र का दर्जा देना चाहता है, तो वह अपनी जनता को उन भू-भागों पर बसने की अनुमति क्यों दे रहा है, जो भविष्य में फिलिस्तीन का हिस्सा होने वाले हैं? इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि इज़रायल के इस अनधिकृत प्रयास पर किसी प्रकार का अंतरराष्ट्रीय दबाव नहीं पड़ा है।
- अधिकतर फिलिस्तीनियों के लिए एक अलग राष्ट्र का सपना दूर की बात लगती है। इस विषय पर अनेक अंतरराष्ट्रीय बैठकें हुई हैं। नेताओं ने शांतिपूर्ण ढ़़ंग से दो राष्ट्रों के गठन की बात भी कही है। लेकिन वास्तविकता में ऐसा हो नहीं पाया है। इसका कारण इज़रायल का दोगला व्यवहार है। कागजी स्तर पर तो वह दो राष्ट्रों की बात स्वीकारता है, लेकिन असलियत में वह ऐसा करता नहीं है।अगर दो राष्ट्रों के गठन का समाधान मान्य नहीं हो पाता है, तो फिर क्या विकल्प रह जाएगा ? एक तरीका हो सकता है कि फिलिस्तीनियों को उनकी नागरिकाता का अधिकार न देकर उन्हें सेना अधिकृत यहूदी राज्य में रहने को मजबूर किया जाए। या फिर एक प्रजातांत्रिक संघीय राज्य की स्थापना हो, जिसमें यहूदियों, मुसलमानों, ईसाईयों और अन्य समुदायों को समान अधिकार दिए जाएं।
- स्पष्ट रूप से इज़रायल पहले विकल्प को पसंद करेगा। अब समय आ गया है, जब अंतरराष्ट्रीय नेताओं को मिलकर फिलिस्तीनियों के प़क्ष में खड़े होना चाहिए और इज़रायल को दूसरे विकल्प के लिए तैयार करना चाहिए।
‘द हिंदू‘ में प्रकाशित स्टेनले जॉनी के लेख पर आधारित।
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