इंफॉर्मेशन स्टेटक्राफ्ट से निपटना जरूरी है
Date:17-01-18
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बीते वर्ष 2017 की अनेक विशेषताओं में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का तेजी से प्रसार भी एक विशेषता रही। इस अत्याधुनिक तकनीक ने मानव सभ्यता के लिए एक खतरा उत्पन्न कर दिया है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस एवं इलोन मस्क ने तो घातक रोबोट पर प्रतिबंध लगाने तक की अपील की है। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेल ने इस प्रकार के खतरों की आशंका को देखते हुए एक अंतरराष्ट्रीय साइबर आचार संहिता लाने का प्रस्ताव रखा है।
आधुनिक तकनीकों को लेकर देशों में परस्पर कोई समझौता होना या न होना एक अलग बात है। लेकिन 2018 या उसके बाद भी तकनीकों के विकास और विस्तार को रोका नहीं जा सकता। तकनीकी परिवर्तन की गति की दर एवं देशों द्वारा इसको नियमित किए जाने की दर में हमेशा असमानता रही है। इन सबके बीच आज की डिजीटल क्रांति कोई अपवाद नहीं है।
आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस के सैन्यकरण को रोकने की बुलंद होती आवाजों के बीच रशिया के राष्ट्रपति पुतिन का कहना है कि ‘इस क्षेत्र में जो आगे जाएगा, वही विश्व पर शासन करेगा।‘ सच्चाई यह है कि डिजीटल परिदृश्य ही राजनैतिक युद्ध का कारण बन गया है। 2017 को इस पहलू से जरूर याद किया जाएगा।
2016 के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की जीत का एक बड़ा कारण रशिया के तकनीकी हस्तक्षेप को माना जाता है। इस संबंध में पराजित उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन एवं उनकी पार्टी द्वारा बताया जाने वाला ट्रंप और उसके परिवार के रशिया के साथ संबंधों को भले ही निराधार बताया जा रहा हो, परंतु अन्य देशों की राजनीति को अपने तरीके से मोड देना अब असंभव नहीं रह गया है।
- ट्रंप सरकार द्वारा निर्मित नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी (छै) का मानना है कि आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल करते हुए किसी देश के समाज के मूल्यों और संस्थाओं पर आक्रमण के खतरे बहुत बढ़ गए हैं। अनेक मार्केटिंग तकनीकों का इस्तेमाल करके किसी व्यक्ति की गतिविधियों, विचारों, रुचियों एवं मूल्यों का पूरा ब्योरा रखा जा सकता है, और समय पर इनका उपयोग या दुरूपयोग किया जा सकता है।
- इस तकनीक के माध्यम से आतंकवादी गिरोह लोगों पर अपना वैचारिक प्रभाव डालने में सफल हो रहे हैं। इस प्रकार वे तमाम भर्तियाँ कर रहे हैं।
- वेब उपयोग के बढ़ते घिनौने स्वरूप को देखते हुए कई देशों ने इसके घरेलू उपयोग को नियंत्रित करने का प्रयत्न भी किया है। इस प्रकार का कदम चीन में उठाया गया है। चीन में डाटा और आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस को अपने नागरिकों की निष्ठा जाँचने के लिए काम में लाया जा रहा है। इसी आधार पर उनको रोजगार एवं अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
- कुछ समय पहले तक यह माना जाता था कि इंटरनेट जैसी अन्य तकनीकों पर पश्चिमी देशों का अधिपत्य है, और वे रशिया एवं चीन जैसे ही अन्य देशों के समाज और शासन में घात लगा सकते हैं। वर्तमान परिप्रश्य में चीन और रशिया ने इस खतरे से निपटने के लिए प्रबल सुरक्षात्मक क्षमता विकसित कर ली है।
अमेरिका के एन एस एस ने इस नए शक्ति क्षेत्र को ‘सूचना शासन कला‘ या ‘इन्फॉर्मेशन स्टेटक्राफ्ट‘ का नाम दिया है। इसके माध्यम से पहले भी कई देशों में दुष्प्रचार किया गया है। वर्तमान में सोशल मीडिया के विस्तार ने इसे अधिक डाटा एकत्र करने की सुविधा प्रदान कर दी है।
भारत की सामाजिक विभिन्नता एवं प्रजातंत्र की अराजकता को देखते हुए हमारा देश सूचना-शासन से जुड़े दुश्मनों की चपेट में आ सकता है। सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को डिजीटल कर दिया है। हमारे नागरिकों की महत्वपूर्ण सूचनाएं आधार एवं अन्य डिजीटल मंच के जरिए सूचना-तंत्र का हिस्सा बन चुकी हैं। अभी तक साइबर सुरक्षा के नाम पर सरकार की ओर से किया जाने वाला कोई प्रयास सार्वजनिक नहीं किया गया है। सरकार को चाहिए कि 2018 के वर्ष में इस क्षेत्र को प्राथमिकता पर रखे। घरेलू एवं विदेशी पटल पर अपने सूचना-तंत्र को सुरक्षित करे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस‘ में प्रकाशित सी. राजा मोहन के लेख पर आधारित।