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स्वच्छ भारत मिशन की सफलता

Afeias
06 Nov 2018
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Date:06-11-18

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स्वच्छता का गहरा सबंध लोगों के जीवन से होता है। अपशिष्ट से जन्मी बीमारियों से प्रतिवर्ष अनेक बच्चों की मौत हो जाती है, या बहुत से बच्चे जीवन पर्यन्त अविकसित ही रह जाते हैं। अस्वच्छता से जन्मी बीमारियों और मृत्यु के कारण भारत को प्रतिवर्ष 106 अरब डॉलर की हानि होती है।

2014 में चलाए गए स्वच्छ भारत मिशन ने इस नुकसान को बहुत हद तक कम करने का बीड़ा उठाया है। इस अभियान की शुरुआत में मात्र 42 प्रतिशत भारतीयों को ही स्वच्छता में जीवनयापन की सुविधा थी। परन्तु आज यह संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। भारत में लगभग 8.5 करोड़ शौचालयों का निर्माण हो चुका है। 21 राज्यों ने अपने को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया है।

शौचालयों के अलावा इस मिशन का दूसरा पहलू अपशिष्ट का सुरक्षित और प्रभावी निपटान है। इस व्यापक अभियान में आंध्र प्रदेश, ओड़िशा, तेलंगाना, तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। इस कड़ी में ऐसे सीवर तंत्रों के विकास के लिए विभिन्न संस्थानों से अन्वेषकों को निमंत्रित किया गया है, जो कम पानी और बिजली के बिना अपशिष्ट का निपटान करने वाली प्रणाली खोज सकें। इस दिशा में तमिलनाडु में ‘ओम्नी प्रोसेसर’ नामक यंत्र पर परीक्षण चल रहे हैं। यह ऐसा यंत्र है, जो अपशिष्ट को सीधे खाद में परिवर्तित कर देगा। भारत में विकसित अपशिष्ट निपटान की सफल प्रणालियां, विश्व के उन अनेक देशों के लिए वरदान सिद्ध होंगी, जो वर्तमान में स्वच्छता के प्रयास में लगे हुए हैं।

कोई भी सार्वजनिक अभियान तभी सफल होता है, जब वह बुनियादी ढांचों के विकास के साथ-साथ लोगों की सोच को भी परिवर्तित करता है। स्वच्छ भारत मिशन की सफलता का भी यही राज है। यह शौचालयों और अपशिष्ट निपटान तकनीक के साथ-साथ समुदायों की सोच में परिवर्तन को भी संचालित कर रहा है। इस अभियान में तमाम ऐसी हस्तियों को शामिल किया गया है, जिनका समाज पर प्रभाव है। यही कारण है कि यह एक जन-आंदोलन बन सका है।

अभियान के जन-आंदोलन बनने का पता इस बात से भी चलता है कि स्त्री और पुरुष दोनों ही इससे समान रूप से जुड़ गए हैं। पहले पाइपरहित जलापूर्ति वाले घरों में शौचालयों में ले जाने के लिए पानी भरना केवल स्त्रियों का काम हुआ करता था। परंतु अब पुरुष भी यह काम समान रूप से करने लगे हैं। इससे पता चलता है कि लोग यह मानने लगे हैं कि शौचालय केवल महिलाओं और कन्याओं की ही नहीं, बल्कि उनकी भी जरुरत है। यही स्वच्छ भारत मिशन की सफलता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित मेलिंडा गेट्स के लेख पर आधारित। 1 अक्टूबर, 2018