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You are here: Home >> Knowledge Centre >> Current Content >> विश्व व्यापार संगठन (WTO) का बदलता स्वरूप

विश्व व्यापार संगठन (WTO) का बदलता स्वरूप

विश्व व्यापार संगठन (WTO) का बदलता स्वरूप

Date:28-02-17

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सन् 2015 में नैरोबी में हुई विश्व व्यापार संगठन (WTO) की मंत्रिस्तरीय बैठक में इसकी अप्रांसगिकता पर ही अधिक चर्चा हुई और ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप को एक तरह से इसका विकल्प बताया गया था। इस बैठक में विश्व व्यापार संगठन के दोहा सम्मेलन को आगे बढ़ाने या उन पर प्रतिबद्धता से काम करने के बारे में कोई निर्णय नहीं हो पाया। यह विकासशील देशों के लिए अहितकर रहा। विकासशील देश काफी समय से संगठन की प्रासंगिकता पर आवाज उठा रहे हैं, क्योंकि उनके हित इससे जुड़े हुए हैं। संगठन में अमीर या विकसित देशों का वर्चस्व रहा है और वे अपने हिसाब से इसे चलाना चाहते हैं। विकासशील देशों के लिए यह एक बड़ी समस्या है।

  • कृषि सब्सिडी और खाद्य सामग्री की स्टॉक होल्डिंग –

कृषि और बौद्धिक संपदा, दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिन पर विकसित देशों के एकतरफा नियम बनाने से भारत जैसे विकासशील देश भी परेशान हैं।कृषि के क्षेत्र में विकसित देशों ने छोटे कृषकों के हितों की पूर्णतः अनदेखी की है। भारत की मांग रही है कि उस जैसे प्रभुत्व संपन्न देश को अपने देश के गरीब वर्ग को सब्सिडी पर भोजन उपलब्ध कराने के बारे में नियम बनाने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए। दरअसल, भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चलाने के लिए खाद्य भंडारण पर्याप्त रखना पड़ता है। भारत को सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चलाने के लिए कृषि में जो सब्सिडी देनी पड़ती है, वह संगठन के नियमों के विरूद्ध है। जब भारत ने अपने पक्ष को सदस्य देशों को समझाया, तो इसे ‘पीस क्लॉज़‘ के तहत स्वीकार कर लिया गया। भारत की मांग है कि खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्य सामग्री के सार्वजनिक भंडारण को संगठन में हमेशा के लिए स्वीकृति मिलनी चाहिए। इस पर कोई निर्णय नहीं हो सका।

  • व्यापार संबंधी पक्ष –

विकासशीन देशों की समस्याओं का हल न निकलते देख व्यापार को सरल बनाने (Trade Facilitation) के लिए देशों के बीच आपसी बातचीत और समझौतों को गति दी गई। इसमें उन सभी क्षेत्रों को शामिल किया गया, जिसमें  आपसी व्यापार के शुल्क को कम किया जा सके। साथ ही इस समझौते में देशों को अपने सीमा शुल्क एवं सुविधाओं में परिवर्तन भी करना होगा। गरीब देशों के लिए यह एक मुश्किल काम है, क्योंकि सीमा पर आधुनिक सेवाओं के लिए धन लगाना उनके लिए संभव नहीं है। फिर भी विकासशील देशों ने शुरूआत में इसका विरोध करते हुए भी इसे बाली सम्मेलन में स्वीकृति दे दी।

  • ई – कॉमर्स और निवेश –

अब 2017 में ब्यूनस आयर्स में होने वाली 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक से इलैक्ट्रॉनिक, कॉमर्स और निवेश को भी शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है। इसका समर्थन इंटरनेशनल चेंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) और बी-20 (जी-20 देशों का बिज़नेस समूह) ने भी किया है। माइक्रो, लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्योगों को बढ़ावा देना इस पक्ष की ख़ास बात है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि ई-कॉमर्स के ज़रिए छोटे और बड़े व्यापार के बीच की खाई को भरा जा सकेगा। साथ ही छोटे दर्जे के व्यापारियों के लिए नए बाज़ार खुल जाएंगे।

इस प्रस्ताव में आईसीसी और बी-20 ने विकासशील देशों को ई-कामर्स के जरिए दूसरे देशों के बाज़ारों से जुड़ने हेतू उनके संसाधनों में भी वृद्धि करने की मांग की है। यह मांग ट्रेड फेसीलीटेशन समझौते के अनुरूप ही है। अब विश्व व्यापार संगठन के लिए इन देशों को आर्थिक सहायता देना एक चुनौती है, क्योंकि इसके पास अभी ऐसी कोई सुविधा नही है।

विश्व व्यापार संगठन के मुख्य निदेशक ने ई-कॉमर्स का जबर्दस्त समर्थन किया है। उनका मानना है कि ई-कॉमर्स से व्यापार के परंपरागत तरीके को बदला जा सकेगा। समस्या यही है कि विकासशील और गरीब देशों में फिलहाल इंटरनेट का उपयोग बहुत कम किया जाता है। इससे ई-कॉमर्स का वाकई लाभ उठाने वाले देशों के लिए प्रश्नचिन्ह लग जाता है।इस आगामी बैठक में दूसरा पक्ष निवेश का होने वाला है। इस पर देश आपस में बंटे हुए हैं। विकासशील देशों ने पहले भी इस पर सवाल उठाए थे कि निवेशक देश को अगर निवेश किए जाने वाले मेजबान देश से कुछ विवाद हैं, तो उन्हें किस अंतरराष्ट्रीय पैनल में सुलझाया जाएगा।वर्तमान में कई देश द्विपक्षीय निवेश समझौतों (Bilateral Investment Treaty-BIT) पर काम कर रहे हैं। भारत भी इसमें शामिल है। भारत के बी.आई.टी. के नए मॉडल में विदेशी निवेशकों की शक्तियों को कम कर दिया गया है। साथ ही उनकी तरफ से विवाद उठाने की शक्तियों पर भी शिकंजा कसा गया है।यह निश्चित है कि ई-कॉमर्स और निवेश को विश्व व्यापार संगठन में शामिल करने से अमीर एवं गरीब देशों के बीच खटास आएगी। हम वैश्वीकरण के जिस दौर से गुजर रहे हैं, उसमें सभी देशों और उनके नागरिकों को समान अधिकार देने संबंधी नए नियम बनाने का यह उपयुक्त समय है। इसके बाद ही सभी देश विश्व के व्यापार में समान अवसर प्राप्त कर सकेंगे।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित विश्वजीत धर के लेख पर आधारित।

 

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