विश्व व्यापार संगठन और भारत की भूमिका
Date:10-04-18 To Download Click Here.
दिसम्बर 2017 में ब्यूनम आयर्स में विश्व व्यापार संगठन के सम्मेलन के बाद, हाल ही में इसकी मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन दिल्ली में किया गया।
पृष्ठभूमि –
युद्धों के दौर के पश्चात् एक प्रकार से अमेरिका ने देशों के बीच मैत्रीपूर्ण व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गैट यानि जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एण्ड टैरिफ की शुरुआत की थी। इसका रूप बदलकर वल्र्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन या डब्ल्यू टी ओ हो गया है। ऐसा देखने में आया है कि बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में हर महत्वपूर्ण बदलाव एक भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि के खिलाफ हुआ है। ब्यूनस-आयर्स के गतिरोध के पीछे भी ऐसे ही कुछ कारण हैं।
- चीन के एक आर्थिक शक्ति के रूप में होने वाले प्रसार को अमेरिका अभी पचा नहीं पा रहा है।
- भारत के साथ अमेरिका का गतिरोध द्विपक्षीय है। वह भारत को एक आर्थिक शक्ति के रूप में खतरा नहीं मानता। जबकि चीन को मानता है।
- भारत ने डब्ल्यू.टी.ओ. में ई-कॉमर्स एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों पर विरोध दर्ज किया है। परंतु अभी उसे पर्याप्त देशों का समर्थन नहीं मिला है।
- विकासशील देशों ने भी डिस्प्यूट सेटलमेंट मैकेनिज्म पर विरोध जताया है।
अब चीन शायद व्यापार के मामले में अमेरिका से हाथ मिला ले। इस प्रकार वह विकासशील देशों में अपने पैर पसारने के साथ-साथ विकसित देशों में भी अपना प्रसार करेगा। भारत में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने चीन और अमेरिका के आपसी विवादों को देखते हुए ब्यूनस आयर्स में किसी एक पक्ष का समर्थन नहीं किया था।
वर्तमान स्थिति –
- भारत के अमेरिका के साथ राजनीतिक संबंध अच्छे हैं। व्यापार में भी वह अमेरिका से प्राथमिकता प्राप्त करता है। दूसरी ओर, अमेरिका के जापान और यूरोपियन यूनियन जैसे मित्र-देशों के साथ व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे नहीं हैं।
- भारत अपने ब्यापारिक मामलों में चीन के साथ काफी हानि उठा चुका है। चीन ने हाल ही में इन मामलों को सुलझाने में रूचि दिखाई है।
- अगर विश्व व्यापार में बहुपक्षीय व्यापार के सिद्धाँत को बचाना है, तो भारत जैसे अनेक देशों को चीन और अमेरिका जैसी दोनों आर्थिक शक्तियों से तालमेल बनाकर चलना होगा।
- अगर भारत को कुछ नए मुद्दे उठाने हैं, तो उसे अपना पक्ष रखने में हिचकना नहीं चाहिए। भू-आर्थिक परिपे्रक्ष्य में मित्रता या शत्रुता स्थायी नहीं होती। यहाँ केवल अपनी प्राथमिकताएं देखी जाती हैं। भारत के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा और क्षमता में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बहुपक्षीय व्यापार संबंधों को बचाना जरूरी है।
‘द इकॉनामिक टाइम्स‘ में संजय बारू के लेख पर आधारित।