भारतीय विदेश नीति का आधार-मानवता
Date:04-01-18
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किसी देश की आकांक्षाओं को वैश्विक धरातल पर व्यक्त करने का नाम ही विदेश नीति होता है। नए भारत के क्षितिज को भी एक सशक्त विदेश नीति की अपेक्षा है। वर्तमान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत विश्व में अपनी नई भूमिका के लिए तैयार दिखाई पड़ता है। प्रधानमंत्री की विदेश नीति उस के भारतीय दर्शन मानवतावादी दृष्टिकोण की परिचायक है, जिसके केन्द्र मेें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना सदैव पल्लवित होती रही है।
किसी गणंतत्र के लिए राष्ट्रवाद एवं मानवतावाद एक सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। हमारी विदेश नीति का आधार ये दोनों ही पक्ष बने हुए हैं।हमारी विदेश नीति समृद्धि, सुरक्षा एवं आतंकवाद से जूझने के साझा प्रयास को लेकर चल रही है। साथ ही वह समस्त विश्व के लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए पूरे विश्व में विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है।
- विदेश नीति में बदलाव की पहली झलक मई 2014 में तब मिल गई थी, जब शपथ ग्रहण समारोह में भारत के पड़ोसी देशों को आमंत्रित किया गया था। तब से लेकर आज तक द्विपक्षीय दौरों एवं परियोजनाओं में साझेदारी के जरिए इसे विकसित किया जाता रहा है। बांग्लादेश के साथ सीमा-विवाद का शांतिपूर्ण निपटारा किया जाना, द्विपक्षीय मामलों को सुलझाने का ही एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के चलते पड़ोसी देश नेपाल को भूकंप के दौरान त्वरित सहायता प्रदान करना इसी नीति का एक हिस्सा था। अफगानिस्तान में जन-कल्याण के लिए किए जाने वाले प्रयासों ने भारत के मानवीय पक्ष को बल दिया है। अफगानिस्तान के 34 में से 31 में भारत के विकास कार्य चल रहे हैं।
अफ्रीका में भी भारत ने जन आधारित योजनाओं पर 10 अरब डॉलर की निधि के निवेश की प्रतिबद्धता दिखाई है। भारत एवं फ्रांस के संयुक्त नेतृत्व में किया गया अन्तरराष्ट्रीय सौर समझौता मानव-विकास पर 2 अरब डॉलर की राशि का निवेश करके इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि को दर्शाता है।
- प्रधानमंत्री ने समस्त विश्व की शांति के लिए आतंकवाद को एक बड़ा अवरोध माना है। अपने कूटनीतिक प्रयासों से उन्होंने संपूर्ण विश्व को भी स्वीकार करने को बाध्य कर दिया है। अब कई देश अपने द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय वक्तव्यों में कुछ आंतकी समुदायों एवं उनके रक्षकों का पर्दाफाश करने में नहीं हिचक रहे हैं।
- पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में सीमा पार से आने वाले आतंक को लेकर सबसे ज्यादा खटास है। इससे निपटने के लिए ही सर्जिकल स्ट्राइक जैसा कदम उठाया गया था। कई देशों ने दबे स्वर में इसे उपयुक्त कदम बताया है।
- संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर जाने वाले मोदी भारत के ऐसे प्रधानमंत्री बन गए, जिन्होंने 35 वर्षों में ऊभर आई एक दरार को भरकर संबंधों को भारत के एक बड़े निवेशक के रूप में तैयार कर लिया है।
- ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह के समझौते ने भारतीय विदेश नीति के एक नए सोपान की शुरूआत की है।
- अंतरराष्ट्रीय रूप से ऊलझे अपने कुछ मामलों को दृढ़ता एवं कूटनीति के साथ सुलझाने के कारण भारत की अपनी एक साख बन गई है। चीन के साथ डोकलाम विवाद को सुलझाकर भारत ने अपनी उत्कृष्ट नेतृत्व क्षमता एवं सैनिक समाधान का परिचय दिया है। इस पूरे प्रकरण ने चीन और भारत को यह विश्वास करने पर मजबूर कर दिया है कि वैमनस्य के स्थान पर सद्भावना से कुछ अधिक प्राप्त किया जा सकता है।
भारत की विदेश नीति का हर दूसरा कदम अपने में मानवीय हित को समेटे हुए चल रहा है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित एम.जे.अकबर के लेख पर आधारित। लेखक विदेश मंत्रालय के राज्य मंत्री हैं।