जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता की आवश्यकता
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जजों के रिक्त पदों के कारण सरकार को न्यायपालिका के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। रिक्त पदों के कारण न्यायपालिका के कामकाज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। काफी वर्षों से जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे। इसको देखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना की। इस आयोग में छः व्यक्तियों को शामिल किया गया, जिसमें कानून मंत्री भी थे। न्यायिक आयोग में प्रधानमंत्री एवं विपक्षी दल के अध्यक्ष को दो सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया था। इसे उच्चतम न्यायालय ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता में कमी आ सकती है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने जजों की नियुक्ति के लिए सरकार को ही जजों की नियुक्ति प्रक्रिया संबंधी ज्ञापन बनाने का कार्य सौंप दिया। इस ज्ञापन पर उच्चतम न्यायालय के सर्वोच्च न्यायाधीश की सहमति आवश्यक कर दी गई।
फिलहाल प्रक्रिया संबंधी ज्ञापन सरकार एवं सर्वोच्च न्यायाधीश के बीच अटका हुआ है। लड़ाई इस बात की है कि जजों की नियुक्ति को सरकार नियंत्रित करे या न्यायपालिका?
इन स्थितियों में क्या किया जा सकता है?
- कानूनी जवाबदेही एवं सुधारों के लिए एक ऐसी स्वतंत्र संस्था की सिफारिश की जा रही है, जो सरकार एवं न्यायपालिका के प्रभाव से स्वतंत्र हो।
- प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में जजों की नियुक्ति के लिए हजारों की संख्या में उम्मीदवारों के बहुआयामी परीक्षण की आवश्यकता होगी। इस प्रक्रिया को सुचारू ढंग से निपटाने के लिए एक ऐसा पूर्ण निकाय चाहिए, जिसके पास एक बड़ा सचिवालय भी हो।
- चयन प्रक्रिया में मनमर्जी एवं भाई-भतीजावाद को रोकने के लिए पारदर्शिता का होना अनिवार्य है। इसके लिए जजों के चयन के लिए तय मानंदड हों, तथा उम्मीदवारों का तुलनात्मक मूल्यांकन उजागर हो। साथ ही चयनित उम्मीदवारों के नामों को नियुक्ति से पहले ही घोषित कर दिया जाए, ताकि इन उम्मीदवारों से जुड़ी कोई भी जानकारी रखने वाला व्यक्ति अगर चाहे तो नियुक्ति अधिकारी को उससे अवगत करा सके।
- उम्मीदवार की योग्यता को जाँचने के लिए क्षमता, कानूनी दांवपेंच के लिए उसके स्वभाव, सामान्य ज्ञान एवं आम आदमी के प्रति उसकी संवेदनशीलता जैसे मानदंड होने चाहिए।
- इस ओर हम ब्रिटिश मॉडल से भी सीख सकते हैं, जिसमें उम्मीदवारों का चयन पूर्व निर्धारित मानदंडों पर ही होता है।
- चयन आयोग में सेवानिवृत्त जजों के अलावा कुछ ऐसे व्यक्तियों को भी रखा जा सकता है, जिन्हें सरकार एवं न्याययपालिका की किसी समिति ने चुना हो।
यद्यपि न्यायपालिका को भी सूचना के अधिकार के दायरे में रखा गया है, परंतु अभी तक न्यायपालिका के प्रशासनिक एवं न्यायिक कार्यों की जानकारी नहीं दी जाती है। उच्च श्रेणी न्यायालयों में नियुक्ति का काम एक गंभीर प्रक्रिया है। इसका सही और पारदर्शी होना नितांत आवश्यक है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित प्रशांत भूषण के लेख पर आधारित।