कानून के ऊपर धर्म या धर्म के ऊपर कानून

Afeias
26 Dec 2017
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Date:26-12-17

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हमारे देश में धार्मिक मान्यताओं का बहुत महत्व है। ऐसा ही महत्व रामजन्म भूमि एवं बाबरी मस्जिद के विवाद के सिलसिले में भी देखा जा सकता है। इस विवाद के दोनों ही पक्ष न्यायिक हस्तक्षेप के पक्षधर नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी तो खुले रूप में कह चुकी है कि बाबरी मििस्जद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया है और लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए रामजन्म भूमि को हिन्दुओं को सौंपा जाना चाहिए। अगर राजनैतिक दलों का यही रवैया है, तो इस विवाद को उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकार किया जाना अटपटा लगता है।रामजन्म भूमि विवाद के संदर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धार्मिक भावनाओं को कानून के ऊपर रखते हुए अपना निर्णय दे दिया था।

  • विवाद का इतिहास

अयोध्या में बाबरी मस्जिद 1528 से खड़ी है। 6 दिसम्बर 1992 को कारसेवकों ने इसमें तोड़फोड़ की। संसद ने अयोध्या अधिनियम, 1993 के द्वारा विवादास्पद भूमि को अपने कब्जे में ले लिया। तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस पर सर्वोच्च न्यायालय की सलाह मांगी। अयोध्या अधिनियम की धारा 4 (3) के अंतर्गत मस्जिद के समस्त दावों को खारिज कर दिया गया था। ऐसा देखते हुए पाँचों न्यायाधीशों ने एकमत से इसे अस्वीकार कर परामर्श देने से मना कर दिया।

इसी कड़ी में सन् 1994 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय आया, जिसे उच्चतम न्यायालय ने सिरे से खारिज कर दिया था।

10 सितम्बर 2010 को विवाद का निर्णय करते हुए विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया गया था।

2011 में इस पर की गई अपील की सुनवाई करते हुए न्यायाधीशों को 2010 का फैसला ‘विचित्र’ जान पड़ा। विवाद में किसी भी पक्ष ने भूमि के विभाजन की मांग नहीं की थी। इसके बाद भी ऐसा निर्णय होना ‘धर्म को कानून से ऊपर रखने’ की धारणा को सिद्ध करता है। 2010 के निर्णय के दौरान धार्मिक ग्रंथों का सहारा लेकर यह सिद्ध किया गया कि इस्लामिक कानून के अनुसार वह मस्जिद थी ही नहीं। निर्णय में यह भी कहा गया कि ‘आस्था और परंपरा के अनुसार हिन्दू विवादित स्थान को राम का जन्म स्थान मानकर उसकी पूजा करते रहे हैं।’

दोनों न्यायाधीशों का यह निर्णय 712 में मोहम्मद बिन कासिम के हमलों से भी प्रभावित रहा। न्यायाधीश शर्मा ने रेखांकित किया कि ‘इस दौरान हमले के साथ-साथ मंदिरों को नष्ट करके मस्जिदों एवं मदरसों का निर्माण किया गया था।’न्यायाधीश अग्रवाल ने आस्ट्रियाई लेखक जोसफ की पुस्तक का उल्लेख किया है,जिसे जोसेफ विवादित भूमि के भ्रमण के बाद लिखा था। जोसफ ने इसे रामजन्म भूमि बताया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि इसका निर्माण बाबर के सेनानायक मीर बाकी या औरंगजेब ने नहीं किया था।नरेन्द्र मोदी सरकार भाजपा के तीन तलाक, अनुच्छेद 370 के निराकरण एवं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के तिहरे एंजेन्डे को पूरा करने के लिए न्यायालयों पर दबाव बना सकती है। परन्तु अगर इसका निर्णय मुसलमानों के पक्ष में जाता है, तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को बदला नहीं जा सकेगा।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित .जी.नूरानी के लेख पर आधारित।